आसमान बुनती औरतें
भाग 11
हर्षा ने कुलवीर को आकर नहीं बताया कि वह घर पर रूकी थी इतने वर्षों में लकी से भी फोन पर बात नहीं हुई थी और न ही पापाजी ने बात करने की कोशिश की थी। कुलवीर ने भी अपने डर के कारण हर्षा से नहीं पूछा कि वह कहाँ रूकेगी या रूकी थी।
इन्टरव्यू देने के बाद हर्षा ने कोई चाहत नहीं रखी की वह मुम्बई में नौकरी करें। हर्षा और लकी की बातें शुरू हो गई। लकी ने एक दिन मम्मीजी से भी बात की, दोनों खूब रोए, कुलवीर उस दिन बहुत खुश थी तो उदास भी उतनी ही थी, कलेजे का एक टुकड़ा अगर दूर रहेगा तो किसी भी माँ को कैसे अच्छा लगेगा। लकी की बातों से कुलवीर ने यह तो समझ ही लिया कि उसके संस्कार आज भी लकी में विद्यमान है, उसके बात करने का तरीका उसे खुब अच्छा लग रहा था अब वह हर्षा से लकी ऐसा दिखता होगा, ऐसा चलता होगा, ऐसा कग्गी करता होगा पर बात करती रहती।
एक दिन हर्षा ने बताया कि लकी ऐसा दिखता है। लकी को फोटो देखते ही कुलवीर रो पड़ी, तब जाकर हर्षा ने बताया कि वह घर पर रूकी थी लकी के साथ, दादा-दादी के साथ का किस्सा कह सुनाया । हर्षा ने जानबूझकर पापाजी का जिक्र नहीं किया जबकि कुलवीर चाहती की कि हर्षा बिना पूछे ही बता दे कि उसके पापाजी कैसे है, उनका व्यवहार हर्षा के साथ कैसा था, क्या कोई……..ये क्या सोच रही हूँ मैं, जिस व्यक्ति ने उसे कभी प्यार नहीं किया वह अब कैसे बदल सकता है। हर्षा से पूछना भी ठीक नहीं है, अब पिछली जिन्दगी छोड़ आई हूँ क्यों उन्हीं जख्मों को कुरेदे।
अब हर दो चार दिनों में लकी से दोनों की बात हो जाती, कभी-कभी बीजी घर पर होती तो लकी की बात उनसे भी होती। अब तीनों खुश रहती, उन्हें लकी के दूर होने का आभास नहीं होता।
बीजी ने आठ दिनों पहले ही कुलवीर से कह दिया था चुनाव का समय आ गया, पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ बढ़ गई है। चुनाव वाले दिन हमें खाने के पैकेट तैयार करके देना है, तुम दो दिनों की छुट्टी ले लेना।
कुलवीर ने ऑफिस में अपने बास को दो दिनों की छुट्टी के लिए कह दिया था। आज शाम से ही पूरी रात खाना बना और सुबह सारा खाना पैक किया गया, नौ बजे पूरे पैकेट जब चले गये तो कुलवीर को थकान घेरने लगी। बीजी को उसने समय पर सोने भेज दिया था, बीजी सुबह छः बजे आ गई थी, सुबह की चाय का काम उन्होंने सम्हाल लिया था।
‘‘पुत्तर तू घर जा आराम कर, मैं नाश्ता गुजारी की मदद से सम्हाल लूँगी,’’…
‘‘बीजी, गुजारी भी तो रात भर जागा है, फिर सुखवीर भाई की हालत भी खराब है, सुखवीर को भेज देते हैं वह घर पर सो लेगा, भाभी को भेज देगा,’’…कुलवीर बोली।
‘‘अभी तक तो बहु को आ जाना था, बच्चे भी स्कूल चले गये होगे,’’… बीजी बोली।
‘‘आती होगी,’’… कुलवीर बोली।
कुछ देर बार बहु आई तो बेटे, बेटी व गुजारी को आराम करने उसने घर भेज दिया।
बहु ने उस दिन का नाश्ता व खाना सम्हाला। ढाई बजते-बजते वह घर चली गई बच्चे स्कूल से आ जाते हैं।
ड्राइंग हाल में खाना परोसने का काम बीजी और एक लड़का जो ऊपरी काम करता है उसने किया। बीजी अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत करती है फिर भी थकान कही न कही से उनके शरीर में प्रवेश कर जाती और थकान का अनुभव करने लगी। पांच बजे तक बेटा सुखवीर आ गया, सात बजे तक कुलवीर भी आ गई।
दिन महिनों और साल में बदलते रहे। हर्षा ने प्राइवेट कम्पनी में काम कर लिया है, कुलवीर लगतार उसी कम्पनी में काम कर रही है। बीजी अपनी व्यस्तता की वजह से कुलवीर का साथ चाहने लगी है। उन्हें कुलवीर की सहायता के साथ-साथ अपने आसपास उसका बना रहना ज्यादा भाता है, लगता है कोई उसको सम्हालने वाला है सुखवीर होटल के काम के साथ-साथ बाहर के कामों में भी लगा रहता है, बेटे से प्यार तो है लेकिन आत्मीय सरंक्षण कुलवीर से मिलता है। बीजी अब सुखवीर को यदा-कदा अपने साथ काम करने के लिए कहती रहती है।
संघर्ष की भट्टी में तीन अलग-अलग आयु वर्ग की महिलाएँ लगातार जल रही है और तपकर कुन्दन होती जा रही है जीवन के इन दिनों को उन्होंने मिलजुलकर भुगता है, कुछ बुरा भी नहीं हुआ है सब होता चला गया और वह करती चली गई। हां अब कभी-कभी कुलवीर को लगने लगा है कि हर्षा अपनी पसन्द उसे बताये जिससे वह उसकी शादी कर सके। हर्षा की तरफ से ऐसे कोई संकेत उसे नहीं मिल रहे है। कुलवीर बीजी से भी इस सम्बंध में बात कर चुकी है।
हर्षा जिस नई कम्पनी में काम करती है वहांँ का मेनेजर उसे भाने लगा है लेकिन मैनेजर की तरफ से ऐसे कोई संकेत नहीं मिलने से हर्षा ने अपने दिल को रोक रखा है, वह उन परिस्थितियों में विश्वास नहीं करती कि एक तरफा प्यार हो वह अपने मम्मीजी का हाल देख चुकी है, इस मामले में दिल को वह बहुत अच्छे से समझा लेती है और दिल आज तक तो बगावत पर नहीं उतरा है।
क्रमश:..