रच दो नववर्ष

नव वर्ष मंगलमय होअर्धरात्रि हवा मेंबिखरा संदेशडाल पर बैठाभौर की राह देखतापक्षी सोच में डूबाक्यों कर रहेशांत हो सो रहीरात्रि को हैरानयह कैसा रिवाजजो कुटते है छाती परसंगीत नाम की … Read More

ग़ज़ल

कभी प्यार दादा का पाओ तो जानें,ज़रा मार दादी की खाओ तो जानें। बिरह में जो मरहम लगाती प्रियतमा,ये बीवी को जाकर सुनाओ तो जानें। हमारी कसम जो भी तुमने … Read More

दाईजा

(अन्तिम भाग 5) टूर ने नचिकेत, शिप्रा को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है। यह बात दूसरी है कि क्लास रूम व कालेज में नचिकेत संतुलित व्यवहार करता है। परीक्षाएँ … Read More

ग़ज़ल Gajal

हमारे बीच में अनबन नहीं है, मुझे तुमसे कोई उलझन नहीं है। परिन्दे लौट कर आते हैं घर को, जरा रुक सांझ तो साजन नहीं है। दुपहरी बीत जाती है … Read More

सोच के दायरे Scope of thinking

ज्ञानसिंह ने रिटायरमेंट दो साल पहले ले लिया कुछ विभागीय उलझनों से बचने के लिए, उसे लगा रिटायर होने और रिटायरमेंट लेना दोनों ही परिस्थितियाँ आज खतरनाक हो गई हैं, … Read More

पीले फूलों वाली

ऐ पीले फूलों वालीतेरे बदन पर छाएहरियाली की डालीतू मतवाली, छैल छबीलीबलखाती लहरातीआती जाती फिर आजसवर के कहाँ चलीमस्त पवन में डोल रही हैआँचल को यूँ सहलातीकुछ तो कह देया … Read More