दाईजा
भाग 2
मुख्य द्वार में प्रवेश करते हुए लगा किसी राजा की हवेली में प्रवेष कर
रही है और वह एक रानी है, अपने मन में उठे विचारों को झटक दिया,
सोचने लगी दाईजा की सुनाई कहानियों का असर है जो हर अच्छे पात्र के साथ अपने को जोड़ लेती हैं।
पूरा मैदान पार कर अंग्रेजी के एल आकार में बिल्डिंग बनी है। दक्षिण की ओर के कारिडोर को पार करते ही प्रिंसिपल के रूम के आगे रूक कर सांस दुरूस्त की, तब कहीं दरवाजा नॉक किया।
”कम इन,“…की आवाज के साथ ही अंदर दाखिल हुई।
”बैठिए,“…खिचड़ी नुमा बालों के सभ्रांत व्यक्ति ने एक नजर डाली।
”सर, मेरा नाम शिप्रा है और यह मेरा अपाइंटमेंट लेटर।“…
“ठीक है, आप आज से ज्वाइन कर लें, हो सके तो अपनी क्लास भी देख लें।”… प्रिंसिपल ने कहा।
“ठीक है सर, यह जानकारी कहाँ से मिलेगी।”
“स्टाफ रूम में मि. जतन हैं उनसे पूछ लें, नई नौकरी के लिये
हमारी शुभकामनाएँ मिस शिप्रा।”…
“थैंक्यू सर, मैं अपनी तरफ से बहुत बेहतर काम करुंगी,”… कहती हुई शिप्रा उठ गई।
स्टाफ रूम में सभी से परिचय हुआ, अपनी क्लास की जानकारी ली तो वह थोड़ी विचलित हो गई। सीधे फायनल ईयर के स्टूडेन्ट को पढ़ाना, वह खुद ही इसी साल पढ़कर निकली है कॉलेज के स्टूडेंट कैसे होते हैं उसे पता है, किंतु यहाँ क्या हाल होगा सोचती हुई वह क्लास की ओर बढ़ने लगी।
मनोविज्ञान पढ़ने से उसे मानव प्रवृत्ति के बारे में जानकारी तो है,
किंतु पहली बार इतने सारे विद्यार्थियों के सामने लेक्चरर की हैसियत से जाना अजीब सी घबराहट हो रही है।
क्लास रूम में मात्र आठ स्टूडेंट गोला बनाकर बैठे बातें कर रहे
हैं। वह भी उन्हीं के पास चेयर खींच कर बैठ गई, बातों का सिलसिला
तो शिप्रा के क्लास रूम में आते ही बंद हो गया था। सभी उसे देखने लगे, जिनमें पांच लड़कियाँ और तीन लड़के थे।
“मेरा नाम शिप्रा है, मैं आपकी मनोविज्ञान की क्लास पिचर, अगर आप लोग चाहेंगे तो ले पाऊंगी।”…
“आपका स्वागत है मैडम, हमें खुशी होगी आप मैडम हमें पढ़ायेगी,”… विपुल बोलता हुआ खड़ा हो गया, सभी हड़बड़ा कर खड़े हो गये।
“अब तो जूही, क्लास में रेगुलर आना पड़ेगा, भाई पढ़ाई तो करनी है,”… रोनित के बोलने के अंदाज पर सभी हँस दिए।
शिप्रा भी मुस्कुराए बिना न रह सकी। हल्की फुल्की चर्चाएँ होती रहीं। इस बीच और स्टूडेंट आकर बैठ गऐ, किंतु पहले से बैठे नचिकेत ने कोई बात नहीं की, वह तो शिप्रा को मौका मिलते ही चुपके से निहार रहा है।
दूसरे दिन से यथा समय क्लास शुरू हो गई और शिप्रा भी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल होती चली गई। दाईजा को खत लिखना वह कभी नहीं भूली पहले दिन का कालेज जाना और रोज के पढ़ाने के उसके तरिके पर भी दाईजा को लिख देती।
पहली तनख्वाह मिलने पर उसने अपना खर्च काटकर पैसे दाईजा को भेज दिए पैसे भेजने पर उसे अपार संतोष मिल रहा है, अब उसकी इच्छा होने लगी कि क्यों न और बड़ी नौकरी के लिए प्रयास करें, जिससे वह और ज्यादा से ज्यादा दाईजा की मदद कर सके।
कालेज में आने वाले अखबारों में वह प्रतियोगिता परीक्षाएं तलाशने लगी। नौकरी करते हुए छः माह हो गए इस बीच वह एक बार दाईजा के पास हो आई है, लगातार क्लास में स्टूडेंट की उपस्थिति से प्रिंसिपल व स्टाफ में उसकी कामयाबी को स्वीकार किया जाने लगा है।
क्रमश:…
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