तृप्ति

नेहा दुल्हन बन गई, दूल्हा देखा ठीक-ठाक है, साफे में कुछ समझ भी नहीं पा रही है, सारी रस्में यंत्रवत चल रही थी और वह अपने जीवन मैं घंटी सारी घटनाएँ एक के बाद एक चलती चली आ रही हैं।
मम्मी की धुंधली सी तस्वीर याद है, अक्सर कमर पर आँचल बांधकर हम चारों भाई बहनों के बीच भागती दौड़ती हुई मम्मी जाने कैसे हम सब से नाता तोड़ गई। वह छोटी थी, समझ नहीं सकी कि क्या हुआ ? मम्मी-पापा के रिश्तेदारों ने हमारी बदकिस्मती पर आंँसू बहाए । सभी के चले जाने के बाद, हम अकेले हो गए थे। बड़ा भाई विकास,छोटू पापा और वह। पापा उसके साथ हर काम में मदद करते थे, वह इतनी छोटी भी नहीं थी कि उदास बैठे पापा को नहीं समझ पाती । अक्सर पापा उसे गले लगा कर खूब रो लेते थे। विकास भैया भी हम तीनों भाई बहनों का खास ध्यान रखते थे।

यह क्रम चलते हुए दो वर्ष गुजरे। जब वह नवमीं क्लास में थी विकास भाई दसवीं में और छोटू छठवीं में था। एक दिन उसने सुबह का खाने में पराठे सेके थे । पापा से आग्रह किया कि पहले खाना खा लेते हैं उसके बाद बाजार से हमारे ही स्कूल की चीजें खरीदने चलेंगे । पापा को शाम की शिफ्ट पर जाना था इसलिए उन्होंने कहा नाश्ता किया ही है, इसलिए पहले बाजार चलते हैं फिर आकर सभी साथ में खाना खाएंगे। हम चारों बाजार निकल गए। लौटते वक्त हम पर जाने कहाँ से गोली चली।हम सड़क पर ही लेट गए । विकास भैया को गोली लगी । पापा ने उसका हाथ छोड़कर कहा ….”छोटू को लेकर भाग जा बुआ के घर”… उस समय कुछ सुझा ही नहीं, छोटू का हाथ थामा और वह भाग गई । गोलियां लगातार चल रही थी । बुआ के घर पहुंची तो पूरे परिवार में अफरा-तफरी मच गई ,और शाम होते-होते पापा व विकास भैया, का दुनिया छोड़ जाने का समाचार मिला।

हम लोगों का अपना मकान था। ऊपर के हिस्से में किराएदार रहते थे। उन्हीं से पापा की कभी – कभी पापा की कहा-सुनी हो जाती थी। सभी को शक था कि हो न हो यह हरकत किराएदार ने ही करवाई है।

आनन-फानन में मकान चार दिनों में ही खाली करवा लिया गया। दोनों भाई बहन बांट दिए गए। बड़ी बुआ ने उसे रखा और छोटी बुआ ने छोटू को, हम चारों सदस्य उसी दिन से ही अलग हो गए । छोटू बहुत रोया उससे लिपटकर, किंतु बड़ी बुआ ने साफ मना कर दिया कि मैं केवल एक का ही भार उठा सकती हूंँ।

बारहवीं पास करते ही उसकी शादी पक्की हो गई और आज उस व्यक्ति से जिसे वह नहीं जानती,उसी से शादी हो रही है । पापा-मम्मी, विकास भैया जगन बहुत याद आ रहे हैं, उसका रोना अविरल चल रहा है। छोटू की ओर देखती हैं तो संभलने की कोशिश करती हैं, बड़ी होने पर पता चला था कि मम्मी छोटा भाई बंटी को लेकर गुस्से से घर से निकली और बंटी को लिए ही ट्रेन के आगे कूद गई थी। क्या बात हुई होगी यह पापा ही जानते थे या विकास भैया। हम सब छोटे थे।

पंडित जी ने उसका हाथ अजय के हाथ में थमा दिया तो वह वर्तमान में लौट आई। फेरे हुए, कहीं कोई उत्साह नहीं था, उसकी शादी वैसे भी भार उतारने का काम था। बुआ के व्यंग्य-वाणों ने सारी संवेदना के तंत्र सोख लिए थे और वह धीरे-धीरे विद्रोही और हटी लड़की की उपाधि पा गई थी ।

छोटू भी समझदार हो गया है उसी ने समझाया था.. ” दीदी, शादी के बाद तुम्हें अच्छा लगेगा, तुम्हारा अपना घर होगा, वहाँ मैं भी साथ रह सकता हूँ।”

एक आश सी बंध गई थी, शादी होने पर हम भाई-बहन एक साथ रह सकेंगे।
ससुराल पहुँच गई । यादें लगातार चलती रही, मानो सारी घटनाएँ कल ही घटी हो, एक लंबा युग पार कर रही थी वह,जहाँ वर्तमान का असर समाप्त था ।

सुहाग-सेज पर अजय ने घूंघट उठाया, तब होश आया, उसमें न शर्म थी, न घबराहट । अपनों के तिरस्कार ने उसे पत्थर बना दिया था, अजय को निहारने लगी,गौरवर्ण मुखड़े पर गोल काली आँखें, गुलाबी होंठ, चिकना चेहरा,भोला मासूम-सा मुख देखकर लगा ही नहीं कि यह उसका दूल्हा हैं।

अजय भी उसे निहार रहा हैं । नेहा की ठोढ़ी उपर करके अजय ने होले से मस्तक चूम लिया ।

अजय धीमें से बोला…”तुम मेरी वह धरोहर हो, जिसे मैं जिंदगी भर संभाल कर रखूँगा, मेरे पूरे व्यक्तित्व पर तुम्हारा राज होगा।”

अपनत्व की तरसी वह जार-जार रो पड़ी।
अजय घबरा गया,… “मैंने, ऐसा क्या कह दिया, साॅरी-साॅरी नेहा, मुझसे ऐसी क्या कोई गलती हो हुई, मेरी किस बात से तुम्हें ठेस पहुँची है, प्लीज बताओ नेहा ? कुछ देर अजय मान-मनुहार करता रहा, फिर धीरे से पलंग से उतरकर खिड़की के पास परेशान सा खड़ा हो गया।

नेहा का जब रुदन रुका तो देखा अजय के व्यक्तित्व का आकर्षण उसे पिघला रहा है,एक ऐसा सहारा जो उसे सुरक्षा व संरक्षण देगा। आँसू पोछकर, नेहा, अजय के पास जाकर खड़ी हो गई। अजय ने पलटकर देखा, नेहा की नजरें झुकी हुई थी । अजय की गर्म सांसे उससे टकरा रही थी। नेहा को अब वह सब कुछ हो रहा था जो एक लड़की को इस समय होना चाहिए, नेहा की पलके लाज से भारी हो गई, मन तृप्ति के आगोश में समा गया। अजय ने बहुपाश में लेने लगा तो सहमती जता दी।

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