A sagar nirmohi/ ऐ सागर निर्मोही
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ऐ सागर निर्मोही
मैंने तुझसे
अपने दिल की बात
कही थी
और कहा था
किसी और से न कहना
पर तुमने
दूसरे तट पर जाकर
मेरे प्रीतम के चरणों में
मेरे अंतरंग दर्द की
पीड़ा रख दी
तेरे स्पर्श ने ही
समझा दिया
कि मैं यहाँ पर
विलग हूँ
तुझसे भी मेरे
बिछोह को
छुपाया नहीं गया
मैंने तो सुना था कि
अपने अंदर
छोड़ी गई
गंदगी को
छोड़ आते हो
पर मेरे अंतर्मन को ही
किनारे छोड़ आये
ऐ सागर तू निर्मोही
पिया जैसे ही निकला
मेरी हया को
शर्मसार कर
सरेआम कर दिया….
अंजना छलोत्रे
शानदार कविता
बहुत बहुत धन्यवाद.
प्रेरणा दायीं कविता