ग़ज़ल

ग़ज़ल

122 122 122 122
नदी को समंदर में जाना पड़ेगा
हमें ज़ीस्त यूँ भी बिताना पड़ेगा ।

रहम करने वाले यक़ीनन बड़े हैं
उन्हें अपना रहबर बनाना पड़ेगा।

बुरा हाल होता यहां इश्क़ में
सुकू चैन सारा गवाना पड़ेगा ।

कई बार रुसवाईयाँ सह के देखीं,
सबक कासिदों को सिखाना पड़ेगा ।

बुलंदी पे चढ़कर न मगरूर होना,
पड़ा वक्त तो सर झुकाना पड़ेगा ।

जो है हौसला तो मुकाबिल में आओ,
कि औकात मैं तुमको लाना पड़ेगा ।

मोहब्बत में रुसवा हमें करने वालों,
कभी सामने तुमको आना पड़ेगा।

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