खिली धूप

(लघुकथा)

लेखिका…डाॅ. रुखसाना सिद्दीकी

प्रकाशन
अयन प्रकाशन
महरौली नई दिल्ली
मूल्य ₹180

इस किताब का मुख्य पृष्ठ बहुत ही आकर्षक है पेड़ों की झुरमुट से झांकती हुई सूर्य की किरणें अलौकिक आभा बिखेरती है।

111 लघु कथाओं का यह संग्रह मन को मोह लेता है और आप एक बैठक में ही पांच से छः कहानी पढ़ जाते हैं सभी कहानियाँ बहुत ही अच्छी और ज्ञानवर्धक है जीवन की व्यवहारिकता में किस तरह के पड़ावों को झेलना पड़ता है उनसे रूबरू करती यह लघुकथा संग्रह बहुत ही रोचक बना है।

लघुकथा नासूर, एडजस्टमेंट, सौगात, मदद, पॉसिबिल, रक्षक, धरातल, सार्थकता अपने आप में अनोखी हैं रिश्तों के ऐसे ताने-बाने बुने हैं की मन पसिज जाता है।

वही अमूल्य… कहानी अपने धन संपदा का बंटवारा भला क्यों एक सवाल पैदा करती है। यह कैसा दान… कहानी अपनी अपनी समझ नजरिया अपना अपना दर्शाती है। भेद… कहानी समय पर समझ आ जाए तो भी ठीक है कि और इंगित करती है। सदुपयोग… कहानी अपना काम करना पुरुष का यह सोचना तो ग्रहणी के लिए स्वर्ग के समान है। मातृत्व सुख… कहानी में यह सच है कि जो नहीं है उसमें क्या दोष ढूंढना जो है उसी में सकारात्मक सोच रखता ही बेहतर है ।

जीवन में हम अंग्रेजी शब्द के इतने आदी हो गये हैं की हिंदी भावार्थ ही नहीं सूझता और इंग्लिश शब्द हिंदी में लिखकर काम चला लेते हैं लेकिन हिंदी पढ़ते वक्त अंग्रेजी शब्द पढ़ते-पढ़ते झटका देता है जो पढ़ने की लय तोड़ देता है लेखक को यह होना चाहिए की हिंदी को ही प्राथमिकता दें।

सोलह आने सच… यह तो हर गाँव का किस्सा था जिसे मैने खुद तोड़ा है बिल्कुल इसी तरह जिस तरह इस कहानी में तोड़ा गया है। प्रार्थना… मानव की यही मिशाल तो धरती पर विराजमान है। हम तभी तो छूटेंगे जब कोई जानकारी दे, यह संदेश देती है अंधविश्वास की परत… कहानी। हुनर की कदर करने वाले बहुत है जहाँ रूढ़ियाँ दम तोड़ देती हैं शर्त… कहानी यही दर्शाती है। यह वह संताने हैं जो किसी राक्षस वंश की होगी गलती से मानव रूप धारण कर लिया इस कहानी गुणा भाग… में यही बताया है।

युवा होती लड़कियों में यह आत्मविश्वास आ जाए तो क्या कहना समाज का पूरा कुड़ाकरकट साफ हो जाए निर्णय… कहानी से। मोह के धागे कभी नहीं टूटते हमेशा जुड़ने को आतुर रहते हैं… विजातीय। रिश्तों की चिंदी-चिंदी होती परंपरा कहाँ जायेगा यह सब करके मानव… खुली कब्र में। देखा देखी मैं घर का प्यार भरा माहौल कैसे बिगड़ता है यह निरूत्तर… में है। सच्ची भावना से किया गया कार्य मीठा फल ही देती है यहाँ कर्म की प्रधानता आवश्यक है करने वाला कौन किस भावना से और ग्रहण करने वाले की क्षमता का आंकलन ईश्वर स्वयं कर देता है …तर्पण। किसी की समझ को परिवर्तित होते देखकर एक माँ ही होती है जो संतोष की पराकाष्ठा पाली रहती है …ममत्व।

बच्चों के जीवन में हमारा होना कितना मायने रखता है जहाँ दिल में लबालब प्यार का प्याला छलके तो माँ अपनी खुशी तो छोड़िए मौत को भी फिर कभी आना कह सकती है… देहरी। घुर्तता की हद… न्याय। जब जागो तभी सुबह… प्रायश्चित। स्वार्थ की आँधी भविष्य की वेदी पर… दक्षिण। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता जो नहीं…नैतिक शिक्षा। दृढ़ता चट्टान को तोड़ सकती है…नियत। किसी भी बात की शुरुआत सुखद होती है…पहल। आदतों के गुलम हम नहीं…अहसास। उम्र और समझ में थोड़ा सा ही फर्क है…बचपना। समझ की गहराई नापना असम्भव…परिवर्तन । जगह-जगह का फर्क…बिझूका।

मन में दृढ़ता हो तो मंजिल दूर नहीं…गुदडी के लाल। सटीक निर्णय… समझौता । इंसानों की नस्ल से बेहतर जानवर…वफादार ।भोले भाले सटीक सवाल…गारंटी। ममत्व सुख की अनुभूति…फुहार। न्याय का जबरदस्त तरीका…प्रदूषण। प्यार का संगम जहाँ बहे वहाँ उम्र का क्या बंधन…बचपन की साखी। फर्क आपस का…स्पष्टवादिता । किसे जख्म देते इंसान…असलियत। अलग-अलग रस्में अलग कानून…अपना देश। क्षमता का दिखावा… अधिकार । समय के साथ समझौता…सामंजस । सब चुकता हो गया… दुआ । दुआ ही दुआ है जन्मे शिशु को…उपवास।

फूलों के रंग…कुछ उलझा सा मन । नई नवेली…अपनी-अपनी समझदारी । सुखद अंत… हिम्मत की दरकार हर वक्त हर मोड़ पर। दृष्टिकोण… सही वह मजबूत नींव की चाह। कैछी होती है बाढ़… नीति का भोलापन । अस्मत… नियत का अंदाजा। वीक स्टूडेंट… संगत की छाँव। अनुगामिनी… जैसे को तैसा ज़वाब। नया बरस… अपना अपना नया वर्ष। चेंज… बदलाव प्रकृति का नियम है । भ्रमजाल… कड़वी सच्चाई। बारी… माँ को बोझ समझती नरी।

मिड डे मील…सोच की कसौटी, परिवर्तन की बयान दिखती है। आश्रय…बेटियों की अहमियत बताती यह कहानी। बात पते की… ज्वलन्त समस्या की बेहतरीन प्रस्तुति की है। डिमांड…समझ की पराकाष्ठा मानवता का तकाजा देती लघुकथा, इंसानियत का पलड़ा भारी ही रहता है बेहतरीन। प्रतिबंध… करार और जिम्मेदार कौन का सवाल टांक दिया, अब तो इंसान चेत जाये कब रुकेगा यह सिलसिला।

टास…माँ का निर्णय कब किन परिस्थितियों में किसके पाले में जायेगा सोचा भी नहीं जा सकता, परिणाम के समय भी माँ ही उचित निर्णय कर पाने में आज भी सक्षम है। स्वच्छ वातावरण…जोरदार व्यंग्य, सच सत्ता की सोच और वहाँ रहने वालों की अपनी जिम्मेदारी उठाने के बीच बनते ऐसे संयोग में यमराज को ही सोचना पड़ेगा। अच्छे दिन…समझ से परे आम आदमी की ऐसी समझ जो समय के साथ करवट लेती है और वह मन मसोस कर रह जाता है शायद परिवर्तन का आभास उसे इसी तरह होता है।

लेखिका डॉ. रुखसाना सिद्दीकी के इस लघुकथा संग्रह खिली धूप में विभिन्न पहलू उठाकर एक जगह एकत्रित किया है जो एक सुखद अनुभूति देता है और आपको सोचने को मजबूर भी करता है अच्छे प्रयासों से की गई अच्छी पहल को साहित्य जगत में भरपूर प्यार व सम्मान मिलेगा इसी आशा के साथ में उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ।

अंजना छलोत्रे ‘सवि’

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