भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस

स्व सहायता से गाँव की तस्वीर बदल रही है महिलाएं

भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। इस दिन 24 अप्रैल 1993 को संविधान लागू हुआ था। 2010 में पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया गया था। संविधान के भाग IX में अनुच्छेद 243 से 243 (O) तक 73वें संशोधन अधिनियम को दरकिनार करते हुए “पंचायतें” शीर्षक से एक नया भाग जोड़ा गया और पंचायतों के कार्यों के भीतर 29 विषयों से युक्त एक नई ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी गई।

जनभागीदारी से कई महिला सरपंचों नेे क्षेत्र में आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण विकास कार्य द्रुत गति से हो रहे हैं। वर्तमान में जल संकट पूरे देश में व्याप्त हैं। वहीं कुछ जिलों में इस संकट से उबरने के लिए महिला सरपंच युद्ध स्तर पर जुट गई हैं। वे जनभागीदारी के सहयोग से जल संकट को दूर करने के लिये प्रयासरत हैं। इसका श्रेष्ठ उदाहरण महू तहसील की जामली महिला पंचायत क्षेत्र हैं जिसमें शासन द्वारा 4 लाख रूपयों की स्वीकृत राशि एवं जनभागीदारी से एकत्र 8 लाख रूपयों की राशि, इस प्रकार कुल 12 लाख रूपयों की लागत से तालाब का गहरीकरण एवं स्टाप डेम का निर्माण करवाया गया है। इस तरह जल संकट को दूर करने की दिशा में प्रभावी व अनुकरणीय कदम उठाया है। यह जिले की एक अनूठी मिसाल है।

दतिया के बैंड बाजे वालों की दुकानों पर काम करके दो जून की रोटी की व्यवस्था करने वाले अनुसूचित जाति वर्ग के गरीब और तंगहाल दस परिवार, जो बांस के पेड़ के तनों के कारण अब तंगहाली और बदहाली से बाहर निकल चुके हैं। इन परिवारों की सभी आयु की साक्षर एवं नवसाक्षर महिलाएँ दो साल पहले शहरी स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना के तहत स्व-सहायता समूह गठित कर अपनी सक्रिय भागीदारी से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई हैं। स्वयं सहायता समूह चलाने के लिए जरूरी सभी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए जिला शहरी विकास अभिकरण द्वारा ढाई लाख रूपये मुहैया कराएं गए हैं और तकनीकी सहयोग भी प्रदान किया गया है। इस मदद में सवा लाख रूपये का अनुदान भी है । इस स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष 40 वर्षीया श्रीमती शीला बताती है कि वे थोक में पूरा ट्रक बांस लेती है । और बांसों का उपयोग डलिया, पूजा की डलिया, पंखे, सूप शादी के छपा आदि बनाती है उनकी सदस्यों को श्रम के मेहनताने के अलावा लाभांश को भी साझे कार्य के लिए प्रयोग करती है। उनके घर में शौचालय व स्नान घर बनवा लिये हैं। बच्चे स्कूल जाने लगे हैं।

विश्व विकलांग दिवस पर राष्ट्रपति डाॅ. अब्दुल कलाम द्वारा इन्दौर की कुमारी रेखा कारड़ा को उत्कृष्ठ कर्मचारी के रूप में सम्मानित किया गया। इसके पहले वे राज्य स्तरीय श्रेष्ठ शिक्षिका का सम्मान प्राप्त कर चुकी है। विकलांगता उनके जीवन में कभी बाधा नहीं बनी ।

गुना जिले में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित ऐतिहासिक महिला दिवस के अवसर पर सम्पूर्ण जिले से करीब ढाई हजार महिलाओं ने शिरकत की जिसमें स्वयं सेवी संस्थाओं, स्व सहायता समूह, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता एवं अन्य महिलाएँ शामिल थीं। इस सम्मेलन में वृद्ध महिलाओं को उनके अच्छे काम व अनुभव के लिए सम्मानित किया गया।

स्वप्रेरणा से इन्दौर जिले की भारती शर्मा ‘कोदरिया’ ग्राम की सरपंच है । सरपंच की पहल से शासन ने गांव में सड़क बनवाने के लिए तीन लाख रूपए दिये, वही ग्रामीणों ने उतनी ही राशि एकत्र कर छःलाख की लागत से नई सड़क बना ली ।

सरपंच भारती शर्मा के प्रोत्साहन से गत दिनों गांव की सामूहिक सफाई भी की गई है पिछले से वर्ष बरसात में गांव में बाढ़ आने पर पीड़ित गरीब महिलाओं को कम्बल भी वितरित किये जा चुके है । प्राकृतिक आपदा से मृत एक महिला के परिवार को सरपंच की सहायता से शासन द्वारा पचास हजार की शासन से सहायता दिलवाई गई।

भारती शर्मा की पहल पर ग्रामीणों द्वारा गार्डों के साथ पौधे लगवाए गये है । इसी तरह हायर सेकेण्डरी स्कूल में जनसहयोग से सरदार पटेल और महात्मा गांधी की मूर्तियां लगवाने का कार्य चल रहा है, इस काम के लिए चालीस हजार रूपए एकत्र किये गये है। दूरसंचार विभाग से गांव की सड़कों की क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त हुई है इस गांव की सड़के सीमेंटीकृत है । ग्राम पंचायत द्वारा डेढ़ लाख की राशि जल संवर्धन के लिए स्थानीय स्टापडेम का जीर्णोद्वार कराया गया है । जिससे करीब पन्द्रह सौ बीघा जमीन में कुओं, ट्यूबवेेलों में भूजल स्तर की वृद्धि हुई है । गांव की चार आंगन वाड़ी केन्द्रों में से दो के लिए ग्राम पंचायत द्वारा भवन निःशुल्क उपलब्ध कराए है । इंदिरा आवास योजनांतर्गत ग्यारह हितग्राहियों का चयन किया गया है । आठ को नवीन कुटीर बनाने और तीन को आवासों के उन्नयन के लिए स्वीकृति दी गयी है ।

इसी तरह लीला और ललिता बाई ने स्व-सहायता समूह बनाकर पन्द्रह इमली के पेड़ खरीद लिए, दो वर्ष में इनकी संख्या पचास पेड़ की हो गई अब वे आठ से दस क्विंटल इमली का उत्पादन कर रही है।

भोपाल की मीना जरदोजी का काम व्यवसाय के रूप में करके शहर व प्रदेश में ही नहीं विदेश में भी शोहरत हासिल कर रही है।

स्व-सहायता समूह में गुना की तुलसी, नीमच की शान्ताबाई सीहोर की नस़रीन मण्डला की लक्ष्मीबाई ने शारजंहा में अपने हुनर से विदेशों में अपनी पहचान बना रही है ।

प्रेरणा देने में जीवनशाला का हौसला बुलन्द है पच्चीस रूपये रोज में जीवन बसर करने वाली जीवनशाला हवाई यात्राएं करती है । वह दिल्ली, मुम्बई, ग्वालियर, भोपाल ही नहीं बल्कि दुबई जाकर महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के गुर सिखाती है ।

खरगौन के नर्मदा स्व-सहायता समूह ने गरीब महिलाओं को पचास-पचास रूपये की पूजी से शिवलिंग तैयार करने का कार्य शुरू कराया जो अब इस काम में 50 से 100 महिलाएं प्रतिदिन काम करती है वही शासन के सहयोग से विदेशों में लगने वाले मेलों में यहां की महिलाएं अपनी कलाकृति बेचती है।

इसी तरह मण्डला जिले के सेमरखावा गांव की 60 वर्षीय धनिया बाई मारावी सरपंच बनी है वह बखूबी अपनी सरपंची चला रही है, उनके अनुभव, उनकी दृढ़ता उन्हें काम करने में कोई परेशानी पैदा नहीं करते । इसी जिले की राजेश्वरी कुलेष चटुआमार गांव पंचायत की सरपंच है पति सीमा पर तैनात है और वह गाँव के उत्थान के कार्यों में जुटी हुई है। सईत्रा उइके गे्रजुएट है सिवनी जिले की डुगरिया गांव की यह सरपंच सरकारी नौकरी छोड़कर गांव की तरक्की में शामिल होकर बेहतर तरीके से अपना काम काज देख रही है। महिलाएं शिक्षा में पीछे भले ही हों आत्मविश्वास एवं लगन में किसी से कम नहीं हैं।

अब गाँव का उत्पादन देश ही में नहीं बल्कि विदेशों के बजारों में अपनी साख बना रहा है। स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित वाशिंग पाउडर को भारतीय ब्रांड से मल्टीनेशनल कम्पनी इमामी राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रिय बाजारों में बेचने की तैयारी कर चुकी है। इसके तहत प्रतिमाह 22 क्विंटल वाशिंग पाउडर के विक्रय का अनुबंध किया जा चुका है, जो कि आगे चलकर एक टन प्रतिमाह के आकड़े के पार जायेगा वहीं विंध्य वैली के बैनर तले समूहों द्वारा पापड़ और मसालों को हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड पहले से ही बाजार में बेच रहा है।

इसी प्रकार के उदाहरण जिले की कई महिला सरपंच क्षेत्रों के दिये जा सकते हैं जो इस दिशा में प्रयत्नशील हैं।

महिला सरपंचों की पहल से महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है। उनमें बचत की आदत विकसित हो रही है, उन्हें सूदखोरी से मुक्ति मिल रही है और वे छोटे मोटे धंधे कर रही हैं । उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है और वे आत्मनिर्भर हो रही हैं। यह महिला सशक्तिकरण का सहज माध्यम है।

कुछ पंचायतों में महिला सरपंचों ने आरक्षण की सार्थकता को सिद्ध कर दिखाया। ये साधारण घरेलू महिलाएँ अपनी जिम्मेदारियाँ समझ रही हंै, आक्षेपों और आरोपों का निर्भीक होकर सामना कर रही हैं। विशेषकर उस सामाजिक परिवेश में जो पुरूष प्रधान है । यहाँ यह बात सिद्ध हो चुकी है कि महिला सरपंच केवल मोहरा नहीं हैं वे समाज को बदलना चाहती हैं । विकास को एक नई दिशा देना चाहती हैं। जिन संकल्पनाओं को लेकर एक तिहाई महिलाओं का आरक्षण किया गया है वह सार्थक होता दिखाई दे रहा है। इन महिलाओं को अब सरपंच पति, पंचायतकर्मी या विशिष्ट व्यक्ति के इशारे पर कार्य करने की जरूरत नहीं रह गई है। वे अच्छी तरह समझने लगी है कि किस तरह से भ्रष्टाचार किया जा रहा है और उससे कैसे निपटना है? वे जानती हैं उनके क्या अधिकार और कर्तव्य हैं।

यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि पंचायतों के प्रथम कार्यकाल की अपेक्षा द्वितीय कार्यकाल में जिले की तहसीलों की महिला सरपंच अधिक जागरूक एवं सक्रिय होकर अपने उत्तरदायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव कौफी अन्नान ने अपने संदेश में माना है – ‘‘महिला उत्थान से ही दुनिया को गरीबी और रोगों से मुक्त किया जा सकता है। महिलाओं को आगे बढ़ाये बिना सतत् विकास एवं समानता की बात बेमानी होगी।’’

पंचायती राज व्यवस्था के द्वितीय कार्यकाल में जिले की महिला सरपंचों के सकारात्मक पक्ष को उजागर करते हैं। कुछ स्थानों में महिला सरपंच कम पढ़ी लिखी एवं अधिक आयु की होने के बाद भी अपने अनुभवों के कारण दबंगता, दृढ़ता, आत्मविश्वास से खुलकर अपनी बात पंचायत, ग्रामवासियों एवं अधिकारियों के समक्ष रखती हैं एवं अपने उत्तरदायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन कर ग्राम विकास के कार्य कर रही हैं

सामाजिक रीति-रिवाज (पर्दा प्रथा) एवं समाज का रूढ़िवादी माहौल कुछ महिला सरपंचों के पंचायत कार्यों को करने में बाधक नहीं है। इसके साथ ही नशा मुक्ति की दिशा में महिलाओं के दुस्साहस का उदाहरण इन्दौर जिले की महू तहसील में देखा गया है। वर्तमान कार्यकाल में भी कई पंचायत क्षेत्र में महिलाएँ इस अभियान में प्रयत्नशील हैं। वे अधिक उत्साहित होकर अपने कार्यों को निष्पादित कर रही हैं । अब महिला ईमानदारी से कार्य क्षेत्र में उपलब्धियाँ अर्जित कर योग्यता सिद्ध कर रही हैं। स्व-सहायता समूहों का गठन कर वे लगातार अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं और स्वावलंबी बन रही हैं। मध्यप्रदेश में महिलाओं को साहसिक कार्यों के लिए पुरस्कार में एक-एक लाख रूपए राशि के पुरस्कार दिये जाएँगे। जो राजमाता विजयाराजे सिंधिया एवं रानी अवन्तिबाई के नाम पर प्रारंभ किये जा रहे हैं।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उनके अच्छे कार्यों के लिए सम्मानित किया गया -ऐसी कार्यकर्ताओं में श्रीमती दंमयती तिवारी (दमोह) श्रीमती विमलावर्मा(रीवा)श्रीमती पार्वती थापा (उज्जैन) श्रीमती ममता नरवटिया (होशंगाबाद) श्रीमती गीता शुक्ला एवं श्रीमती कृष्णा चैकसे (भोपाल) शामिल हैं।

दो महिला स्व-सहायता समूहों को भी पुरस्कृत किया गया। इनमें शिवपुरी की सुश्री बेबी श्रीवास्तव और टीकमगढ़ की श्रीमती गुलाब देवी शामिल है।

अपने-अपने क्षेत्र में हुनर को अंजाम देती और भी अनगिनत महिलाओं ने साहसिक कार्य किया है, और आगे भी करती रहने को दृढ़ संकल्प लिये हैं, यहाँ कुछ उदाहरणों द्वारा ही इस आलेख की जरूरत को पेश किया है।

अंजना छलोत्रे ‘सवि’

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