ग़ज़ल

इस तरह हम निभाते रहे प्रीत को
धड़कनों में बसाया है बस मीत को ।

सब सितम पे सितम हम पे ढ़ाते रहे
आओ तुम भी निभा दो इसी रीत को।

ठानकर जो चलो तो मिले मंजिलें
आँखों में अपनी रखें रहो जीते को ।

दिल है घायल मगर लब पे मुस्कान है
दिल मेरे गा सदा प्यार के गीत को ।

द्रोण ने क्यों अँगूठा लिया मांग कर
तोड़कर आस्था की प्रबल भीत को।

©A

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