ग़ज़ल
2122 1212 22 .इस ज़माने को आज़माना है,ज़िन्दगी को हंसी बनाना है। तीरगी अब यहाँ मिटाना है,कोई ऐसा दिया जलाना है। तुमसे रूठा हूँ मनालो आकर,पास मेरे यही बहाना है। … Read More
अलसाई थी चिहुंक-चहकी-सीढलने लगा दिनपहर-घड़ीअलसाई अँखियों में छाई लाली,उतरी सांझ बहकी-बहकीपनघट पर ओर चली गोरीपलकों में लाज भरीसकुच भरी ढूंढ रहीकहाँ है सजना सखी ?कल-कल करता झरनाबात प्रीत की करताप्यार … Read More
चाहत जानेकब जवान होने लगी ?सपनों की एकपोटली बंधी श्रृंगारदानीप्रसाधनों से भर गई।कितनी ही बारबेख्याली में मुस्कुराईआँखों मेंशबनमी रुत उतर आई। लाज से दोहरीहो हो गईआगे-पीछे तोकभी तिरछी हुईहर कोण … Read More