ओ री पवन
ऋतुराज की अंगड़ाई सेहर पत्ता छलनी हुआजो अहम में खड़ेजड़ से उखाड़फेंकने के अलावाकोई चारा जो नहीं रहाफसलों की झूमतीबहार पर कहरबनकर टूटे होजानों तो कितनाकर आये नुकसान होइस तरह … Read More
बहुत दिनों से सोच रही थी कि घर के पर्दे और सोफे के कवर बदल दूँ, दो-तीन बार बाजार भी गई ,लेकिन वापस आ गई, सोचा पहले टेलर तो ढूंढ … Read More
साजो-सामानचीख पुकारकितनी रौनकहै कोई तीज-त्यौहार?हरियाली मेंघुसती रेलभर दी मांग यही दरकार।पीली रोशनीआभास करातीहोटल में बैठा दिलदार।डूब ही जायेंमन करता हैरसभीनी ध्वनी लच्छेदार।उबड़-खाबड़ पथजीवन केरास्ते में हिचकोले खातीगूंजे पायल की झंकार।लम्बे … Read More