उतरी बहकी सांझ

अलसाई थी चिहुंक-चहकी-सी
ढलने लगा दिन
पहर-घड़ी
अलसाई अँखियों में छाई लाली,
उतरी सांझ बहकी-बहकी
पनघट पर ओर चली गोरी
पलकों में लाज भरी
सकुच भरी ढूंढ रही
कहाँ है सजना सखी ?
कल-कल करता झरना
बात प्रीत की करता
प्यार के संगम को
बेकरार है कंगना
पगडंडी पर सरसराहट
आस के भरते पनघट
दिल के आँगन धूम मचाते
झूम उठे अनगिनत
स्वागत भरी
केसर घुली फिज़ा
इठलाती बलखाती
सजना तेरे द्वारे
ताल तलैया
दिल के कोने-कोने
पनघट पर झरते कचनार
गूंजने लगी सांसों की झंकार..

©A

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