ग़ज़ल

2122 1212 22

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इस ज़माने को आज़माना है,
ज़िन्दगी को हंसी बनाना है।

तीरगी अब यहाँ मिटाना है,
कोई ऐसा दिया जलाना है।

तुमसे रूठा हूँ मनालो आकर,
पास मेरे यही बहाना है।

मुझको मुफ़लिस नही कहे कोई,
दर्दो-ग़म का मिला ख़जाना है।

हाथ मे तेरे बिजलियाँ हैं तो,
मेरे सर पे भी आशियाना है।

©A

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