रच दो नया

किस तरह के
रिवाज बने है इस दुनिया में ?
बेटी से
एक पल में
अर्धांगिनी बन
अपनों का साथ
क्यों कर छूट जायेगा
इस पीड़ा की
पराकाष्ठा का अनुमान है क्या ?
क्यों पुरुष को
विदा नहीं किया किसी ने ?

कुदरत ने ही बनाया है
नर-नारी दोनों को
फिर क्यों जननी
को पराया किया ?
यह रीत बदल कर
कुछ नया रच दो
बचपन सुरक्षित होगा।
कोई जवानी
अपमानित नहीं होगी
सम्पत्ति के लिए
हत्या नहीं होगी
बुढ़ापा नहीं रोयेगा
वृद्धाश्रमों में ताले पड़ेगें
दुल्हनें जलाई
नहीं जायेगी
कर के तो देखो ऐसा
किसी का
कुछ नहीं जायेगा
बस! केवल नारी की तकदीर
बदल जायेगी
और बदल जायेगी सारी दुनिया।

जब सब बदल रहा है
तो यह भी बदल डालो
नई सोच से, समझ से,
परीपक्वता से
नये समाज की
प्यारी-सी तस्वीर उभर आयेगी
जहाँ खुशी में
सब खुश होंगे
तो दुःख में
अकेलापन नहीं रहेगा
पूरा समाज परिवार
में तब्दील हो जायेगा।

©A

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