ग़ज़ल

कोई मंज़िल न आशियाना है,
सारी दुनियां मेरा ठिकाना है।

मैं भी बैठी हूँ इनकी छाया में,
इन दरख़्तों से आबो-दाना है ।

राह देखे कोई, कोई परखे,
अब ये जीवन यही बिताना है ।

तुमको पाने की आरज़ू दिल में
रोते-रोते भी मुस्कुराना है।

बात कितनी ही तुमसे कह डाली,
फिर भी बाकी बचा सुनाना है।

©A

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