दर्द पाया है इस ज़माने से,
बाज आये न दिल लगाने से।
नींद आँखों को दी मेरे रब ने,
आएँ सपने किसी बहाने से ।
देखते राह थे कभी मेरी,
राह बदले हैं अब बहाने से ।
बात आने लगी समझ में अब,
मान जाएंगे वह मनाने से ।
यह मुकद्दर मेरा मुझे हरगिज़,
बाज आता नहीं सताने से।
©A
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