ग़ज़ल

दर्द पाया है इस ज़माने से,
बाज आये न दिल लगाने से।

नींद आँखों को दी मेरे रब ने,
आएँ सपने किसी बहाने से ।

देखते राह थे कभी मेरी,
राह बदले हैं अब बहाने से ।

बात आने लगी समझ में अब,
मान जाएंगे वह मनाने से ।

यह मुकद्दर मेरा मुझे हरगिज़,
बाज आता नहीं सताने से।

©A

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