दाईजा
(भाग 4)
शिप्रा, ने दाईजा को खबर कर दी कि वह टूर पर जा रही है। निश्चित दिन सभी ट्रेन से रवाना हुए। जयपुर में पहला पड़ाव है। सारा रास्ता गाने, गेम और गप्प शप के बीच कट गया। सुबह जयपुर स्टेशन पर सभी ने चाय पी। पी.डब्ल्यू.डी. के रेस्ट हाउस में ठहरने की व्यवस्था कॉलेज की तरफ से ही की गई थी। फटाफट तैयार होकर सभी जयपुर के दर्शनीय स्थल देखने निकल पड़े।
इतने समय साथ रहने से एक-दूसरे की कमियाँ व खूबियाँ उजागर होती जा रही है। नचिकेत, हँसमुख स्वभाव का ही है, यह शिप्रा को लड़कियों से मालूम हुआ।
भ्रमण पर निकले आज पांच दिन हो गए हैं। इतना ज्यादा चलने व लगातार सफर से कुछ लोगों की हालत खराब होने लगी तो कुछ का उत्साह पस्त हो गया।
जेसलमेर में एक पूरा दिन आराम करने के लिये रखा गया, जहाँ घूमने की इच्छा रखने वाले घूम सकते हैं। शिप्रा होटल में ही आराम करना चाह रही थी उसे कुछ कमजोरी का आभास हो रहा है। कुछ बदन दर्द भी हो रहा है, कहीं बुखार न आ जाए, सोचकर ही शिप्रा को घबराहट होने लगी, ऐसा हुआ तो टूर का उत्साह ठंडा होने लगेगा।
लंच के बाद सारी लड़कियाँ, लड़के घूमने निकल गए। शिप्रा अकेली ही अपने रुम में है, उसके दिमाग में पिछले पांच दिनों के भ्रमण के दृश्य उभर रहे हैं जिंदगी में यह सब देखने का मौका मिलेगा उसने कभी सोचा ही नहीं था, सच दुनिया कितनी खूबसूरत है।
कुछ देर बाद ही दरवाजे पर खटखटाहट की आवाज आई, पता नहीं इस समय कौन वापस आ गया, यह सोचते हुए शिप्रा ने दरवाजा खोला।
“मैं अंदर आ सकता हूँ?”… नचिकेत ने पूछा।
सामने नचिकेत को खड़ा देखकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ।
“आओ,”… शिप्रा पलंग पर आकर बैठ गई।
”मैं, बैठ सकता हॅूं?“…
“हा हा बैठो।”…
“क्या आपकी तबियत ठीक नहीं है ?“…
“हां, बस थोड़ी थकान है।”
“चेहरा उतर गया है, बुखार तो नहीं?”…
“नहीं…, नहीं… ऐसा कुछ नहीं,बुखार वगैरह नहीं है।”… बात टालना चाहा रही है शिप्रा।
“बुखार तो है, कौन सी दवा ली ?”…अनायास ही नचिकेत पलंग के पास आकर शिप्रा के सर को छुआ।
“अभी लेना है, वैसे कोई जारूरत नहीं , थोडा आराम करूँगी तो ठीक हो जाउँगी।’’…
नचिकेत, कमरे से बाहर निकल गया। थोड़ी ही देर में वापस आ गया।
शिप्रा, उठकर बैठ गई, पानी का ग्लास लेकर नचिकेत ने दवा शिप्रा की तरफ बढ़ाई। शिप्रा ने दवा ली और लेट गई, दवा का असर ही है कि उसे नींद आ गई।
जब नींद टूटी तो देखा नचिकेत बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा है।
“नचिकेत, यहाँ क्यों बैठे रहे, घूम आते,”…शिप्रा ने कहा।
“अब कैसी तबियत है, शिप्रा ?”…
“ठीक है,”… कहते-कहते शिप्रा को आश्चर्य हुआ कि नचिकेत ने उसका नाम लिया।
“चाय मंगाऊँ, पियोगी ?”… कहता हुआ नचिकेत बाहर निकल गया।
शिप्रा को अजीब सी सिहरन पुनः पैदा होने लगी।
शिप्रा, के साथ चाय पीते हुए नचिकेत ने ढेरों बातें की, दोस्तों की, घर परिवार की, उसे क्या बनना है और क्या करना है, बिजनेस मेन पिता का बेटा, छोटे से कस्बे में पढ़ता है उसे सामान्य जीवन जीकर देखने की ललक शुरू से थी, आज उसके पास सच्चे दोस्त हैं जिन्हें यह भी पता नहीं कि वह कौन है, उसे अपनत्व का इतना बड़ा महासमंदर अपने पिता के साथ रहने पर कभी नहीं मिला, पहले उसके दोस्त, उसके बैंक बैलेन्स के खातिर बनते थे।
नचिकेत, ने बहुत बातें कि, शिप्रा आश्चर्यचकित होकर सोचने लगी यह इतना बोलता भी है? बातों की रौ में बहता नचिकेत शायद शिप्रा से सारी बातें करने के मूड में है।
“शिप्रा, आप मुझे अच्छी लगती हो,…मुझे लगने लगा है कि मैं आपसे प्यार करने लगा हूँ, इतना प्यार कि शायद मैं अपने आप से भी नहीं करता, मैं यह नहीं कहता कि आप भी मुझे प्यार करो, मैं करता हूँ यह मैंने बता दिया।”…उसी रो में उसने कह दिया।
शिप्रा, उसे देखती ही रह गई, उसे उम्मीद क्या, सपने में भी नहीं सोचा था कि नचिकेत पहली बार में ही यह सब कह देगा।
जिन बातों में वह पड़ने को तैयार नहीं है, जिस दिशा में वह सोचना नहीं चाहती, अब समझ रही है कि यह मन में दबा-दबा सा अहसास का बुलबुला नचिकेत को देखते वक्त इसलिए स्पन्दन करता रहा है।
बहुत कुछ बताता और सुनाता रहा नचिकेत, शिप्रा तो कुछ कह भी नहीं पा रही है, इस समय सुनने के अलावा कोई चारा भी नहीं है, एक तो तबियत ने कमजोर कर दिया दूसरा नचिकेत की अप्रत्याशित बातों ने मूक बना दिया, इस समय गेस्टहाऊस में उन दोनों के अलावा कोई नहीं है, सारे विद्यार्थी घुमने जो गये हैं।
दूसरे दिन शिप्रा ने अपने को स्वस्थ पाया, तो पुनः घूमने निकल पड़ी, अब उसे नचिकेत की हरदम तलाश रहने लगी, जरा भी नजरों से ओझल होने पर वह खिन्न होने लगती। तो वहीं अपनी मर्यादा का भी ख्याल आ जाता, दोहरे द्वन्द से गुजर रही है शिप्रा।
यह टूर नचिकेत, शिप्रा के लिए जीवन के कई पहलुओं पर चर्चा करते-करते निकल गया। वापसी में दोनों की झोली में अनगिनत सपने समेट लिए है जहांँ जीवन की शुरुआत का मसला है तो वहीं अपने होने को स्थापित करने का जज़्बा लिए लौटे हैं।
क्रमश:…
©A