दाईजा
(अन्तिम भाग 5)
टूर ने नचिकेत, शिप्रा को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है। यह बात दूसरी है कि क्लास रूम व कालेज में नचिकेत संतुलित व्यवहार करता है।
परीक्षाएँ समाप्त हो गई है, वह भी दाईजा के पास चली गई। दो माह जाने कैसे पंख लगाकर उड़ गए। दाईजा ने इस बार हिदायत दी थी कि उसको अपना जीवन साथी सोच समझकर स्वयं ही चुनना है चाहे जब चुनो, पर मुझे बता देना।
इस बीच नेहा, राहुल और ओमी की नौकरी लग गई। दाईजा इन लोगों के दूर होने से थकी-सी लगीं। जहाँ आश्वासन के भाव थे चेहरे पर, वहीं बिछोह का दर्द वह छिपा नहीं पा रही है दाईजा।
दाईजा को इतना वक्त ही कहां मिलता है कि घाव सहलाती हुई बैठे। वह तो व्यस्त जीवन का ऐसा चक्र हैं, जिसकी चाल कभी धीमी नहीं होती।
परीक्षाओं के बाद नया सत्र शुरू हुआ। नचिकेत ने कॉम्पीटिशन एग्जाम की तैयारी करनी शुरू कर दी है। उसके अन्य दोस्त कहीं न कहीं मंजिल की तलाश में भटक रहे हैं। शिप्रा ने नचिकेत के साथ ही पढ़ाई करने का निश्चय किया और कॉलेज के बाद का समय दोनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहें। नचिकेत को फर्टिलाइजर कंपनी में बेहतर जॉब मिल गया तो शिप्रा अपनी परिक्षाओं के परिणाम के इंतजार में रही।
नचिकेत कुछ समय की छुट्टी लेकर शिप्रा के साथ दाईजा से मिलने जा पहुँचा।
दाईजा का घर अजूबा ही है, किंतु इतना अपनत्व तो उसने किसी संयुक्त परिवार में भी नहीं देखा। नचिकेत से स्नेह करने वालों की तो बाढ़ सी आ गई।
इन आठ दिनों में नचिकेत ने सबका मन जीत लिया। नचिकेत ने अपने पापा द्वारा खुलवाए गए बैंक एकाउण्ट से एक बड़ी राशि दाईजा को भेंट की। दाईजा इसके लिये तैयार नहीं हुई।
“यह सब इन मेरे भाई बहनों के लिये है इन्हें आपकी छाया में कर्मठ बनना है तो आपको इनके साथ तो रहना ही पड़ेगा, अब आप अकेली यह भार कब तक उठाये रहेंगी, अब हमें भी शोभा नहीं देता कि हम अपनी पारी आने पर चूक करे. नये सदस्य भी तो बढेगे ही न दाईजा ।”… शिप्रा ने उन्हें बहुत समझाया।
“शिप्रा, कहीं तेरे जीवन में कोई अड़चन न आ जाये, इसलिए बेटा मैं डरती हूँ, शादी के बाद मैं किसी से भी खर्च नहीं लेना चाहती हूँ।”..दाईजा ने अपनी मंशा स्पष्ट की।
‘‘दाईजा, अभी शादी कहाँ हुई है, पहले ही दे रहे हैैं, नचिकेत को इतना सब करने पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह बहुत बड़े बिजनेस मेन का बेटा है, इसके लिये यह मामूली रकम होगी, प्लीज दाईजा, मैंने भी नचिकेत को बहुत मना किया, किंतु वह मान ही नहीं रहा है।”…
बहुत मान मनुहार के बाद दाईजा तैयार हुईं, तब कहीं जाकर नचिकेत शिप्रा ने राहत की सांस ली। आज नचिकेत शिप्रा लौट आये लेकिन जिम्मेदारी के साथ, दाईजा के जिम्मेदार बच्चे के रूप में।
घर का एक पक्षी अपनी नई दुनिया के लिए अपनी उड़ान भरने से पहले, अपने साथियों की उड़ान को निश्चित कर गया ताकि वह भी उड़े और अपनी मंजिल तक अवश्य पहुँचें।
दाईजा ने संस्कारों का जो रोपड़ किया है, उसमें अंकुरण के लक्षण नजर आने लगे हैं, उनके भरे पूरे परिवार में सुख समृद्धि के साथ नये सदस्यों का आगमन ने जिम्मेदारी की श्रृंखला को अगला कंधा मिल गया है, सघर्ष की वेदी पर चलते-चलते दाईजा अब अपने जीवन पर नाज़ करने को तत्पर है।
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जीवन फिर नया रचेगा….
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