सोच के दायरे Scope of thinking

ज्ञानसिंह ने रिटायरमेंट दो साल पहले ले लिया कुछ विभागीय उलझनों से बचने के लिए, उसे लगा रिटायर होने और रिटायरमेंट लेना दोनों ही परिस्थितियाँ आज खतरनाक हो गई हैं, फिर क्या था जो देखो वह मिलने वाला उससे कैसे गुजारता है समय, का सवाल कर देता है।

“ठीक ही गुजर रहा है,”…

“क्या करते हो पूरा दिन, कैसे समय गुजर रहा है, नया कुछ कर पा रहे हो।”…हर मिलने वाला सवाल दांग देता।

पर कल तो हद हो गई, दूसरे मोहल्ले के शर्मा जी आए अपने दो दोस्तों के साथ।

“आजकल कैसा समय कट रहा है,”…

“ठीक गुजर रहा है,”… नापा तुला जवाब दिया ज्ञानसिंह ने।

“हम बहुत दिनों से आपके पास आने की सोच रहे थे आपको अपनी ओल्ड एज सोसायटी एसोसिएशन का सदस्य बनाना है ,”…

“अभी कुछ सोचा नहीं, कुछ दिन आराम करना चाहता हूँ,”…टालने के लिए ज्ञानसिंह ने बोल दिया।

थोड़ी देर बैठ कर वह चले गए, ज्ञानसिंह मन ही मन सोचने लगा, वह अभी अपनी दिशा तय नहीं कर पा रहा है, और मुझे दिशा देने कितने लोग बढ़ा आ रहे हैं, जीवन में जब बेरोजगार घूमता था तब तो किसी ने किसी भी एसोसिएशन का सदस्य नहीं बनाया, यहाँ तक कि यही एसोसिएशन वाले पास से गुजरने में भी परहेज करते थे कहीं कोई नौकरी न मांग लूं उनसे, वही आज उसके समय का कहाँ उपयोग करना है यह निश्चित करने उसके बिना पूछे ही तय कर रहे है वाह क्या बात है,”…ज्ञानसिंह ने ठंडी सांस भरकर छोड़ी।

ज्ञानसिंह का सोचना है कि तमाम उम्र जीवन को सुखमय बनाने में गुज़ार दी, कभी कोई ऐसा काम नहीं कर सकें जहाँ अपने होने को सार्थक कर सके। अपने मन माफिक काम करना और इतने वर्षों से हसरतों को मुकम्मल करना ही मकसद है। जितने समय नौकरी की लगभग उतने ही समय या हो सकता है उससे ज्यादा जीवन गुजारना हो, तब क्यों बेमतलब समय को बरबाद करें। आपने होने को सार्थक करने का समय तो अब आया है।

थोड़े ही समय में ज्ञानसिंह ने अपने कीमती समय का उपयोग झुग्गी झोपड़ी में रह रहे अनपढ़ बच्चों को पढ़ाने के काम करके शुरू कर दिया। साफ सफाई से रहने और सब से महत्वपूर्ण भूमिका तो उनके होने की समझाई, फिर करता था, धीरे-धीरे काया पलट होने लगी, ज्ञानसिंह बच्चों के चहेते सर हो गये।

रिटायरमेंट बिरादरी में खलबली मच गई, कोई कहता हमसे नहीं होता यह मगजमारी का काम, फिर आँखों से भी कम दिखने लगा है, अब तो आराम का समय है क्यों माथा पच्ची करें, तरह-तरह के बहाने, बयान बाजी हुई और धीरे-धीरे ज्ञानसिंह उनके लक्ष्य से अलग होता चला गया।

©A

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