रच दो नववर्ष
नव वर्ष मंगलमय हो
अर्धरात्रि हवा में
बिखरा संदेश
डाल पर बैठा
भौर की राह देखता
पक्षी सोच में डूबा
क्यों कर रहे
शांत हो सो रही
रात्रि को हैरान
यह कैसा रिवाज
जो कुटते है छाती पर
संगीत नाम की थाप
जहां न सुर है न ताल
सब ही तो है बेहाल
डस्टर से पोंछते
सिलेटपट्टी पर
लिखे संस्कार
जस्न के नाम पर
टांग रहे भविष्य
की दीवार पर
अनगिनत सवाल
जोश ऐसा तो हो
जो होश में
रचा जाये
नई सोच के साथ
भविष्य का इतिहास।
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