कमजोर न समझो

अच्छे खासे सरकारी डॉक्टर से शादी हुई थी लेकिन इतना कसाई निकला जितने औजार वह मरीजों पर चलाता होगा उससे कहीं ज्यादा वह अपनी बीवी पर चलाता है बिनी पहले तो कुछ समझ नहीं पाई की लड़ाई आखिर है किस बात पर, लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनी बेज्जती का एहसास हुआ और उसने भी बदला लेने का सोचा, मन में तो कई बार आया कि छोड़कर चली जाऊँ यह आदमी नहीं है इसके साथ पूरी जिंदगी नहीं निकाली जा सकती है लेकिन जाने के पहले एक बार इसे सबक जरूर सिखाऊँ।

आज रविवार है और आज शाम को फिर उसकी वही तू तू, मैं मैं हो गई, नौबत हाथापाई तक पहुँचती उसके पहले ही बिनी ने घर में रखी हथौड़ी उठाई और हाथ, पैर पर दनादन रसीद कर दिया, बिल्कुल घायल भैंसा जैसे अर्राता रहा, गगनभेदी चीखें निकल रही है, बिनी ने भी टीवी की आवाज़ तेज कर दी, पड़ोसियों को यह एहसास होने दिया कि सीरियल चल रहा है जब अच्छे से कुट लिया उसने तब जाकर आराम से सामने सोफे पर बैठ गई कुछ देर अपने आप को सम्हालने में लगा दिया।

“कैसा लग रहा है।”…बिनी ने पति से इत्मीनान से पूछा। जगह-जगह हाथ पैरों में नील के निशान पड़ गये हैं और उनमें भयंकर पीड़ा हो रही थी। पति बिनी का यह रूप देखकर वैसे ही सकते में हैं।

घायल पति से बोलते तो बन नहीं रहा था लेकिन अंदर ही अंदर ज्वालामुखी फूट रहा था इसकी हिम्मत कैसे हो गई जो इसने मुझ पर हाथ कैसे उठाया…मुझ पर ।

“सोचो….सोचो… सोचने में कुछ नहीं जाता ऐसे ही जब मुझे मारते हो तो मुझे भी ऐसा ही लगता है कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, जैसे तुम हिम्मत करते हो वैसे ही आज मैं कर गई, अब सोच लो आगे भी यही सब चलेगा या और भी मुझे यही दोहराना पडेगा, समझाकर देख चूंकि हूँ, लेकिन समझना तो दूर तुम मुझे मौका मिलते ही समझाइश पर भी गिनकर हाथ उठाते हो, एक कोशिश तो हर इंसान को करना चाहिए, बिगड़ैल को सुधारना जरूरी था अगर यह शिक्षा तुम्हारी माँ ने दी होती तो मुझे यह नहीं करना पड़ता, मेरा सुधारने का तरिका तुम्हें अगर गलत लगता है तो तुम्हारा मेरे साथ किया गया बर्ताव भी ग़लत है।”…बिनी इत्मीनान से हाथ झड़ती हुई बोली।

ताकत किस में नहीं होती, स्त्री को कमजोर समझना ही मुर्खता है, पौरुष का दम्भ भरने वाले आज ताकत देखकर ही सम्हल जाये तो ठीक है।

“मैं आपने व्यवहार पर माफ़ी माँगता हूँ।”…बिनी के तेवर देखकर पति समझ गया कि बिनी को कमजोर समझकर बुरा बर्ताव करोगे तो वही स्थिति तुम्हारी भी होगी बेहतर है इंसान ही बना रहने दो ।

©A

2 thoughts on “कमजोर न समझो

  1. बहुत ही सरल शैली में लिखी कहानी जीवन की गुतथी खोलती

    1. तुम्हें पसन्द आई बहुत बहुत धन्यवाद जोगेश्वरी। हम साहित्य पर काम करे.. यही तो हमारा प्रथम कार्य है।

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