बिगुल

जब से बहू घर में आई है सास को लगने लगा है कि वह बड़े सम्राट की महारानी है और उनका एकाधिकार उनके किचन पर है उसमें बहू की दखलअंदाजी उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं होती और उसे प्रताड़ित करने के लिए छोटी-छोटी गलतियाँ निकालती रहती है और इसी बहाने उसके घर वालों के पालन पोषण पर जमकर टीका टिप्पणी कर के अपने अंदर का जाला साफ कर लेती हैं।

बहू भी मानो उल्टा खड़ा होकर आई है जितना पानी डालो इधर-उधर बिखर जाता है उसके ऊपर जितना भी कूड़ा करकट सांस उड़ेलती है व गर्दन झटक के सब इधर-उधर फैला देती है और उसी गंदगी में उन लोगों के साथ अपने आप को उसी तरह मस्त रहती है ।

बहू के व्यवहार से तंग आकर सास से नहीं रहा गया उन्होंने देखा कि उनके इतने प्रयास के बाद बहू को बुरा क्यों नहीं लगता, पलट कर जवाब भी नहीं देती है, जवाब दे तो कम से कम उत्तर देने का मौका मिले और अपने दिल की भड़ास निकाले लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।

“तुम्हें मेरी बात समझ में आती है या तुम समझ कर नहीं समझना चाहती हो, तुम्हें लगता है कि मैं बोलती रहती हूँ तो बोलने दिया जाए क्या बात है क्यों नहीं बोलती तुम कुछ।”… सास ने तेवर दिखाते हुए बहू से पूछा।

“क्या बोलूँ माँ जी, आप मैं और मेरी माँ में कोई विशेष फर्क नहीं है वह भी इसी तरह बडबडाती रहती है और मेरी भाभी अपना काम करती रहती है मैंने उन्हीं से सीखा है, आप को बड़बड़ाने का सुख मिलता है तो मिलने दीजिए, हमें सुनने में सुख नहीं मिलता तो हम नहीं सुनते हैं, अब बताइए ऐसे में मैं क्या जवाब दूँ आपको जिसका कोई ओर छोर नहीं है, न मैं किसी राजकुमार की रानी हूँ और न आप किसी महान सम्राट की महारानी है, जिस दिन मेरा मन होगा उस दिन में अगर रसोईघर में नहीं गई, आप का साम्राज्य आप संभाल लेना मैं आपके साम्राज्य को छोड़ दूँगी।”… बहु ने जबाव दिया।

इतना सुनते ही सास के होश उड़ गए, समझ आ गया की इसे अपना काम करने दे वरना यह जो बैठे ठाले उन्हें पलंग पर ही चाय, पानी खाना मिलता है वह भी बंद हो जाएगा और फालतू में मेहनत करना पड़ेगा इसलिए अपने अहम को नजर अंदाज करो और धरातल पर आ जाओ, वर्ना बिगुल उधर से भी बज सकता है।

©A

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