1857 का विद्रोह और तवायफें

 आनारू 1857 का विद्रोह और तवायफें में अजीजुननिसा नामक तवायफ के माध्यम से 1857 की जंग में तवायफों की भागीदारी पर विस्तार से चर्चा मिलती हैं । अजीजुन के घर विद्रोहियों की बैठक हुआ करती थीं। अजीजुन ने औरतों का एक दल भी बनाया था। जो हथियारबंद सिपाहियों के साथ घूम-घूमकर युद्ध में घायल होने पर उनकी मरहम-पट्टी किया करता था और उनके बीच हथियार और गोला-बारूद बाँटता था तवायफों का विद्रोहियों को शरण देना और उन्हें वित्तीय सहायता पहुँचाना, इतना जोर-शोर से जारी था कि ब्रिटिश हुक्मरानों को तवायफों की संपत्ति को जब्त कराना पड़ा ताकि वे किसी प्रकार के वित्तीय सहयोग की स्थिति में ना रहें। उनके घरों को लुटवा दिया गया। तवायफें शिक्षित और संपन्न होने के साथ –  साथ राजनैतिक समझ का बेहतर ज्ञान भी रखती थीं। नवाबों से सत्ता हड़पने के लिए जिस तरह तवायफों को अपमानित कर उन्हें मुहरा बनाया गया।
तवायफों ने गांधी जी से आग्रह किया तो उन्होंने तवायफों के नैतिक रूप से पतित होने की बात कह कर उनके इस आग्रह को ठुकरा दिया। जब तवायफों ने यह बात सुनी तो उन्हें बहुत दुख पहुँचा। बहुत सारी तवायफों ने अपने नाचने गाने का काम बंद कर दिया। तमाम तवायफों ने अपने तानपुरे, तबले, सारंगी आदि बनारस में गंगा नदी में बहा दिए और अपने घर में चर्खा कातना शुरू किया । यह निर्णय बहुत बड़ा था क्योंकि वे अपना आर्थिक आधार छोड़ रही थीं और उनके पास रोजी रोटी के दूसरे विकल्प नहीं थे। कई सारी तवायफों ने यह भी निर्णय लिया कि वे जब भी किसी महफिल में गाएँगी, तो सिर्फ देशभक्ति के गीत ही गाएँगी, श्रृँगारिक गीत नहीं। इस प्रकार उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी दी।
अपनी-अपनी तरह से विभिन्न वर्गों ने,  समूहों ने , विभिन्न जाति वर्ग ने आजादी की जंग में अपनी अहम भूमिका निभाई
अन्त….
 
आजादी की जंग में बहन सत्यवती का जिक्र भी काफी रोचक और प्रभावशाली है। चंद्रगुप्त विद्यालंकार रानी सत्यवती के संस्मरणों के माध्यम से आजादी की इन योद्धाओं के व्यक्तित्व की मजबूती और आजादी के अदम्य इच्छा शक्ति को भी बताते हैं।


इसी प्रकार नानासाहेब की बेटी मैनावती को भी ब्रिटिश शासन से माफी न माँगने पर जलती आग में फेंक दिया गया ( मिश्र, 2009, पृ. 257)से  अनेकों विद्रोह में शामिल महिलाओं के जिक्र ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेजों में मिलते हैं।
 
 
© अंजना छलोत्रे

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