ग़ज़ल
ख़ुशियों का कहाँ होना दीदार मुनासिब है,हम छोड़ दें अब उन पर अधिकार मुनासिब है। यह रात अंधेरी है उस पर ये नखरा तेरा,कहती है ये बदली भी इकरार मुनासिब … Read More
विद्या के ऑफिस में समारोह कि तैयारी बहुत जोर शोर से शुरु हुई है । जिसमें सभी कम्पनियों के कर्मचारियों को आमंत्रण दिया गया है। यहाँ हर वर्ष समारोह रखा … Read More
महिमा, माँ को समझा रही है। पराग बीच-बीच में आकर पिताजी की स्थिति बता जाता। पराग की लगन रंग लाई, चार दिनों में ही छुट्टी मिल गई। महिमा, ने अपनी … Read More
महिमा, ऑफिस से बाहर निकलती नजर आ गई, आज महिमा ने जार्जेट की ग्रे कलर की फूलों बाली साड़ी बांध रखी है। बालों को हल्की सी पीन से बांधकर छोड़ … Read More
क्या बताए महिमा, कि टिकट किसी और के पास है। ट्रेन ने रफ्तार पकड़ी तो वह भी परेशान हो गई, फिर सोचा रास्ते में टिकट बनवा लेगी। थोड़ी राहत मिली … Read More
दिन यूँ ही गुजरने लगे, महिमा को नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं थी।जिस तरह उससे इंटरव्यू लिया गया, उससे तो कोई उम्मीद ही नहीं है। लगभग पच्चीस दिनों के बाद … Read More
रात्रि में सभी अपने भोजन पानी की व्यवस्था में व्यस्त हो गये। महिमा ने भी माँ का दिया टिफिन खोला, आलू के पराठे और आम का अचार रखा है, उसने … Read More
महिमा सोच रही है कि माँ को मनपसंद साड़ी पहनाकर भेजा है, जरूर तारीफ़ मिलेगी, माँ आकर उसे सुनाएगी लेकिन जो सुना, सुनकर लगा वही वजह है हर जगह माँ … Read More
‘‘आइये,’‘…महिमा को देखते ही डॉ.पराग बोला। बड़ा सा टेबल लगा है, उपर का टेवलटाप कांच का बना है, साफ-सुथरा कमरा, टेवल के सामने दो कुर्सियाँ लगाई गई है। ‘‘बैठिये, सिस्टर … Read More
‘‘क्या होगा डॉक्टर साहब, मैं कहा से खून की व्यवस्था करूँ ?ब्लड बैंक में इस ग्रुप का ब्लड नहीं है।‘‘…हाथ जोड़े वह व्यक्ति डॉक्टर के सामने दीन हीन हो अपनी … Read More