अगर तुम न होते

(भाग 15)

जिया सुबह ऑफिस पहुँची तो पूरा मन बना कर आई है कि आज अपनी बात कहेगी, लेकिन सुबह के ग्यारह बज गए और अनुज ऑफिस में दिखाई ही नहीं दिया। आज वह चाह रही हैं कि अनुज से मुलाकात हो, पूरा दिन इंतजार करते निकल गया और ऑफिस के बंद होने तक उसका मन खिन्न हो गया।

फिक्र भी हो रही है अनुज आज आए क्यों नहीं, कहीं उसके सोचने से कुछ गलत तो नहीं हो गया, वैसे भी अपने आप को अमंगलकारी ही समझती रही है जिस पर भी उसकी छाया पड़ती है वह तबाह हो जाता है यह सोच जिया ने अपनी बना रखी है उसे हमेशा ही लगा है कि यह सच भी तो है।

कितनी बार मां ने रिश्ते-नातों में कह रखा है कि कोई अच्छा घर वर बताये, रिश्ता बताना तो दूर बुआ तो ताना मार ही देती।

“इस रंग रुप को लेकर तो पैसा ही रिश्ता दिला सकता है भाभी,”…

“आपके समय भी लली,पैसा ही चला था,”…मां भी ज़बाब देने से कब चूंकि छूटते ही कह देती।

“थोड़ा पैसा और डाल देती भाभी, तो वह वकिल हाथ से नहीं निकलता,”… बुआ मां के जबाव से तिलमिला कर रह जाती तो कभी कभी जबाव भी देती।

“ऐसा है लली, पढ़ाई और कर लेती तो वकिल क्यों जज मिल जाता,”…मां भी कहा पीछे रहती।

“हां तो, अब पढ़ी लिखी के लिए भी तो वही सब कर रही हो,”… बुआ हमेशा बुदबुदाते हुए सामने से हट जाती।

घर पहुँचने तक जिया पुराने जाने कितने ऐसे ही किस्सों को याद करती चली गई। मन खिन्न हो रहा है आज हिम्मत करके अपनी बात कहने का दृढ़ संकल्प लिया था लेकिन सब कुछ धरा रह गया, अब तो उसका इरादा ही डोलने लगा, इस विषय पर अब अनुज से बात करना तो दूर, अनुज के बारे में सोचना भी नहीं चाहती। यह सोचते ही थोड़ी राहत महसूस हुई।

अब घर पहुँचकर अगस्त्य को बताने की जल्दी में हैं कुछ बैचेनी कम होगी, लेकिन घर पहुँची तो देखा अगस्त्य घर में दिखाई नहीं दिया, वह सामान्य रहना तो चाह रही है लेकिन हो नहीं पा रही है। चेहरे पर दिन भर की परेशानी साफ छलक रही है, मां सामने नहीं दिखाई दी, जिया अपने कमरे में जाकर लेट गई, दिन भर से जम जम कर थपेड़े मारता मन का समुद्र आखिर आँखों के रास्ते बह निकला।

“तेजल, जिया आ गई क्या,”…मां ने घर में प्रवेश करते हुए छोटी बेटी से पूछा।

“हां मां दीदी अपने कमरे में है, आराम कर रही होगी,”…तेजल ने जबाव दिया। अक्सर जिया घर आ कर कुछ देर शांत लेटी रहती है, आज भी तेजल को यही लगा।

जिया को सारा वार्त्तालाप सुनाई दे रहा है लेकिन आज मां को जबाव देकर आश्वस्त करने का मन ही नहीं हौ रहा है।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

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