अगर तुम न होते

(भाग 14)

जिया की आँखें भर आई अगस्त्य को गले लगा कर सिसक पड़ी, खुद नहीं समझ पा रही है उसकी आंखें क्यों भर आई है उसके अंदर जो उथल पुथल हो रही है वह किसी से कह भी नहीं सकती और अपने आप को समझा भी नहीं पा रही है।

एक मन कहता है कि अनुज उसे पसंद करता है लेकिन वही उसके पद और व्यक्तित्व से वह अपने आप को छोटा मानने लगती है और अपनी इस सोच को ही कई बार लानत दे चुकी है।

आज अगस्त्य ने उसके उसी हिस्से पर चोट की है जहां से उसे खुद भी कोई जवाब नहीं मिल रहा है तो वह अगस्त्य को क्या जवाब दें, इसी पशोपेश में अपने को संभाल नहीं पाई और आँखों से आँसू छलक आए।

अगस्त्य सांत्वना देता रहा समझने कि कोशिश कर रहा है कि अचानक जिया को क्या हुआ है फिर भी कहीं न कहीं वह यह तो महसूस कर ही रहा है कि कोई ऐसा हिस्सा है जो दीदी को बहुत तकलीफ दे रहा है और वह इस हिस्से के बारे में किसी से बात
नहीं करना चाहती।

थोड़ा शांत होने पर जिया संभल कर खड़ी हो गई, अगस्त्य ने भी जिया को थोड़ा नॉर्मल होने दिया और उसके दोनों हाथ थामे रखा।

“कब तक अपने दिल की बात नहीं कहोगी दीदी, मैं आपसे छोटा जरूर हूँ पर मुझसे आप अपना सब कुछ बांट सकती है, मैं वादा करता हूँ कि मैं आपको कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूंगा और न ही आपकी कोई बात कभी मां को बताऊँगा,”…अगस्त्य ने अपनी तरफ से विश्वास दिलाने की भरपूर कोशिश की।

जिया ने बहुत ही दयनीय नजरों से अगस्त्य को देखा जैसे कह रही हो कि मत पूछो, पता नहीं जिस बात के लिए मैं खुद आश्वस्त नहीं हूं कहीं ऐसा न हो कि मैं अपनी ही नजरों में शर्म का पात्र बन जाऊँ।

“प्लीज दीदी, एक बार कह कर तो देखो अपने दिल की बात आपको बहुत हल्का लगेगा, मैं हूँ न अगर आपको ऐसा लगता है कि यह बात सच होगी या नहीं होगी मैं मदद करूँगा,”…अगस्त्य ने कहा, आज ऐसा लग रहा है कि वह बिना जाने, समझे यहां से जिया को जाने नहीं देगा।

थोड़ी देर मौन बिखरा रहा, जिया अपने आप को अंदर से तैयार करती रही और कहीं न कहीं एक दिन किसी को तो बताना ही पड़ेगा तो आज अगर अगस्त्य जानना चाहता है तो उसे अपने दिल की बात बताने में हर्ज क्या है वह पूरी हिम्मत जुटा रही थी कि किस तरह कैसी अगस्त को सामने अपनी बात रखें।

अगस्त भी समझ रहा है कि जिया दीदी अंदर से अपने आपको बताने के लिए तैयार कर रही है और वह इंतजार कर रहा है कि दीदी खुद कुछ बोले।

“अगस्त्य, मैं तुझे कैसे बताऊँ, मुझे बोलने में भी अजीब लग रहा है क्योंकि मैं खुद अभी आश्वस्त नहीं हूँ फिर भी तुम्हें बता रही हूँ कि मैं अनुज सार को पसंद करती हूँ,”…जिया एक ही सांस में सब कह गई।

“हां तो क्या हुआ दीदी, ठीक है न आप पसंद करती है अपनी बात रखो तो अनुज के सामने हो सकता है कि वह भी झिझक रहा हो आपसे कुछ कहने में,”…अगस्त्य ने बहुत ही सहजता से यह बात कही।

“अगस्त्य, तुमने तो देखा है अनुज सर को उनके सामने मैं अपनी बात किस तरह रखू, मेरा ओर उनका कोई मुकाबला ही नहीं है,”…जिया अंदर ही अंदर डर रही है कि अगस्त्य पता नहीं किस तरह उसके बारे में सोचेगा।

“दीदी, कहीं ऐसा न हो जाए कि देर हो जाए, आपको जितनी जल्दी हो सके अनुज सर से बात कर लेनी चाहिए, मेरी मानो तो कल ही उनसे अपनी बात कह दो,”…अगस्त्य ने सुझाव देते हुए कहा।

“उनकी तरफ से भी तो आज तक कोई इसारा नहीं मिला है अगस्त्य, कैसे आगे बढ़कर में अपनी बात रख दूं, मुझे तो सोचकर ही भय होने लगता है,”… जिया अपने आप को समेटते हुए बोली।

“इसमें डरने की क्या बात है दीदी, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वह यही कहेंगे न कि वह आपको नहीं किसी और को पसंद करते हैं, या आप गलत सोच रही है, तो ठीक है ना बात स्पष्ट तो हो ही जाएगी, कम से कम आपके मन में कोई इंतजार तो नहीं रहेगा,”… अगस्त्य ने समझाते हुए कहा और इस बात को बहुत ही सहज रूप में लेने की ओर भी इंगित कर दिया।

“ठीक है मैं बात करने की कोशिश करुगी, “…कहती हुई जिया अगस्त्य का हाथ पकड़ छत से नीचे उतर आई।

जिया देर रात तक मंथन करती रही कि किस तरह अनुज के सामने अपनी बात रखेगी, क्या उसे रखना भी चाहिए या नहीं, किस तरह अपनी बात कहेगी पर वह सोचती रही और थक कर सो गई कि अब सुबह की बात सुबह ही सोचेगी।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

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