अगर तुम न होते

(भाग 13)

इतना बेहतरीन संग्राहलय देखने के बाद, उस पर अनुज का हाथों में हाथ ने जिया को शांत मन में आहट सुनाई दी, वह अपनी इन्हीं नटखट अहसास को भरसक दबाते रहती है। चेहरे पर जाने कैसे सहमें हुए भाव उभरे कि अनुज ने भी कहीं ओर घुमने के लिए नहीं पूछा।
दुसरे दिन दोनों वापस शहर आ गए, वापसी जैसी भी रही हो मन में एक उल्लास लेकर लौटा अनुज। अनुज की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है लेकिन वह जिया के लिए ज्यादा संवेदनशील हो गया हैं।

घर पर जिया को मां बार-बार लड़कों की तस्वीर दिखाने की कोशिश करती और जिया हर बार कोई न कोई बहाना बना देती।

“दीदी, छत पर चलते हैं,”…एक दिन शाम को अगस्त्य ने जिया से कहा।

दोनों छत पर आ गए, कुछ देर टहलते रहे फिर अगस्त्य ने बात शुरू
की ।

“दीदी, आपने अपने भविष्य के बारे में आगे कुछ सोचा है या हम लोगों का ही भविष्य संवारते रहोगी, मैं चाहता हूं कि आप अपने बारे में सोचें,”… अगस्त्य ने अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहा।

“तुझे तो मालूम है अगस्त्य, मैं जब तक तुम दोनों भाई बहनों को पैरों पर खड़े नहीं कर देती तब तक मैं कुछ भी करने का नहीं सोच सकती,”… जिया भी उलझन भरे स्वर में बोली।

“देखो दीदी, हमें हमेशा सकारात्मक होकर सोचना चाहिए, आपकी बात ठीक है आप भावनात्मक होकर बात कर रही हैं लेकिन हम लोग जब पैरों पर खड़े होंगे तब तक आपकी उम्र निकल जाएगी और उस समय बहुत दिक्कतें होंगी, आप समझ रही है मैं क्या कह रहा हूं,”…

जिया सुनती रही और चुप ही रही, उसे पता है कि अगस्त्य से बहस करने से कोई फायदा नहीं है यह फालतू के तर्क देगा और माहौल तनावपूर्ण हो जाएगा।

“मैं कुछ कह रहा हूं दीदी, आप खुले मन से, खुले दिल से इस विषय पर चर्चा क्यों नहीं करती या कुछ है मन में जो आप बताना नहीं चाहती, प्लीज दीदी मुझे बताओ,”…अगस्त्य भी आज पूछ कर ही रहेगा।

“ऐसा कुछ नहीं है, मैंने कुछ सोचा नहीं है, इसलिए मैं अभी इस विषय पर कोई बात नहीं कर सकती,”…जिया ने टालने के लहजे में कहा।

“नहीं दीदी, आज तो आपको बात करना ही होगी, मुझे आज फाइनल जवाब चाहिए, मैं भी चाहता हूं कि आप अपना जीवन हम लोगों के लिए बर्बाद न करें,”…अगस्त्य ने जोर देकर कहा।

“आज तुम्हें क्या हुआ है अगस्त्य, क्यों इन सब बातों में उलझे हो , पढ़ाई पर ध्यान दो,”…जिया ने बात खत्म करने के लहजे में कहा।

“नहीं दीदी, इस बार आप बात को नहीं टालेंगी, मुझे आपका जवाब चाहिए, मैं उन भाइयों में से नहीं बनना चाहता जो अपना फायदा देख जीवन संवारते हैं और अपनी बहन का जीवन तिल तिल झरते देखते हैं, मैं कैसे खुश रह सकता हूं दीदी, जब हम लोगों के जीवन संवारने में अपना जीवन स्वाहा हो जाये,”…अगस्त्य आज जिद पर ही अड़ा है।

जिया को समझ आने लगा कि अगस्त्य आज मानेगा नहीं, आज इसे हुआ क्या है, मां ने इसे कुछ कहा है या यह अपने मन से ही इस तरह विचलित हो रहा है।

“ज़बाब दो दीदी,”… जिया को मौन देखकर अगस्त्य बोला।

“अच्छा ठीक है इस बात पर बाद में बात करते हैं, मुझे कल जल्दी ऑफिस निकलना है,”…जिया चलने को हुई तो अगस्त्य ने हाथ थाम लिया।

“नहीं दीदी, आज तो आपको बताना ही होगा, आपके मन में चल क्या रहा है, मैं छोटा जरूर हूं पर अगर आप किसी को चाहती है या कहीं दिल टूटा है, बताईए तो सही, मैं क्या कर सकता हूं यह मैं देख लूंगा, आप मुझसे कह तो सकती हो,”…अगस्त्य का स्वर आद्रता से भरने लगा। उसे अपने छोटे होने और दीदी की मदद न कर पाने का अफसोस हो रहा है।

जिया को लगने लगा कि अगस्त गंभीर है और आज वह बिना जाने छोड़ेगा नहीं, पता नहीं यह क्यों ऐसा कर रहा है अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़ कर इन बातों में उलझ रहा है।

“कहां खो गई दीदी,”…जिया को मौन देखकर अगस्त्य ने जिया के कंधे पकड़कर हिलाये।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *