अगर तुम न होते

(भाग 12)

“साहब जी, आपको कारों का शौक है तो हम सुधाकार म्यूजियम देख सकते हैं,”…

“यहां की क्या खास बात है,”…जिया ने उत्सुकतावश पूछा।

“यह संग्रहालय, सुधाकर साहब की कल्पना का अदभूत नमुना है साहब जी,…

“ऐसा क्या है,”… अनुज ने पूछा।

“सुधाकर साहब के नाम सबसे बड़ी ट्राईसाइकिल बनाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड दर्ज है साहब जी,”…पारीक ने जानकारी दी।

“ऐसा क्या किया है सुधाकर साहब ने,”… अनुज ने पूछा।

“वहां चले क्या साहब जी,”..पारीक ने पूछा।

“जिया, आप क्या कहती है चले क्या,”… अनुज ने जिया की इक्छा जानना चाही।

“इस अदभुत संग्रालय को देखते हैं सर,”…

“जिया, मुझे सर मत बुलाओ, आफिस में नहीं है हम अभी,”…

“जी,”…जिया सहम गई।

सुधा कार संग्रहालय के बाहर गाड़ी रुकी। मुख्य द्वार पर एक कार के पोस्टर पर सुधाकर कार संग्रहालय लिखा है। कौतुहल इतना है कि दोनों ही तेज-तेज चलते संग्रहालय में पहुंच गए। सामने ही सुधाकर यादव के बारे में जानकारी लिखी हुई है।

सुधाकर यादव को बचपन से मोटर गाड़ीयाँ और यांत्रो के प्रति आकर्षण रहा है, चौदह साल की उम्र से ही कूड़े से आवश्यक सामान एकत्रित करके पहली गाड़ी बनाई । यह ट्राइसाइकल एक जुलाई दो हजार पांच को उन्होंने हैदराबाद में चलाई, जिससे सभी को पता चला कि यह अदभूत साईकिल के निर्माण कर्ता कौन है, और सुधाकर यादव का नाम दो हजार पांच में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे बड़ी तिपहिया साइकिल बनाने के लिए दर्ज किया गया। इस साइकिल की ऊंचाई, व्यास, लम्बाई, मीटर, फीट, कितने किलोमीटर, किस रफ्तार से चलेगी सब कुछ विस्तार से लिखा है।

अनुज जिया रोमांचित हो रहे हैं जितनी जल्दी पढ़ने की उत्सुकता है वहीं देखने का लालच भी बढ़ रहा है।

इस अनोखे संग्रहालय में कारों को अलग-अलग रुपों में प्रदर्शित किया गया है। अदभूत कल्पना को आकृतियों में बनाया गया है। इन सभी वाहनों को बनाने के संसाधनों को जानकर अनुज जिया को घोर आश्चर्य हो रहा है, सारी गाड़ियां कबाड़ से बनी है, जिनमें गति भी है जिसे कम गति से सड़क पर चलाया भी जाता है।

अनुज उत्सुकता के तहत आगे निकल गया, एक जगह ऐसा कुछ देखा की पलटकर जिया के पास आ गया।

“जिया, और भी अदभूत नज़ारा देखो,”…कहते हुए जिया का हाथ थाम उसी तरह बढ़ गया जहाँ वह अदभूत नज़ारा देखा था।

जिया अनुज के हाथ थामते ही कल्पना कि दूनिया से बाहर आ गई, यह सब इतना अप्रत्याशित हुआ कि जिया खिंची चली आई।

“यह देखो जिया,”… अनुज ने अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के लिए एक पर्स और ऊंची एड़ी के जूते को कार के रूप में बनाया है जिसे छ: सीसी इंजन द्वारा चलाया जा सकता है।

जिया इस अदभूत नजारे को देखते ही भूल गई की अनुज हाथ थामे है, महिलाओं को भी ध्यान में रखकर गाड़ी बनाना सच में घोर आश्चर्य की बात है, यही नहीं बाल दिवस के लिए एक कलम, पेंसिल और पेंसिल शापनर को गाड़ी का रुप दिया है। अपने शौक को किस कदर जूनून में तबदिल कर दिया है सुधाकर जी ने।

यह गाड़ियाँ बिक्री के लिए नहीं है, इस संग्रहालय को दो हजार दस में संग्रहालय के रूप में खोला गया है।

अनुज जिया का हाथ थामे हुए ही एक और बार संग्रहालय देख आया।
जब दोनों एक जगह खड़े हुए तब कहीं अनुज को लगा कि वह जिया का हाथ थामे है।

“माफ करना जिया,”…कहते ही अनुज ने हाथ धीरे से छोड़ा।

जिया तो वैसे भी मंत्रमुग्ध हो गई है क्या कहे, क्या सुने वह तो लाज से
सर से पांव तक दोहरी हो गई।

जाने कितनी देर दोनों अपने-अपने ख्यालों में उसी जगह खड़े रह गये।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

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