अगर तुम न होते

(भाग 11)

“सर, ड्रायवर साहब से पूछते हैं,”…जिया ने समस्या का समाधान बुझाया।

“हां यही सही है, क्या नाम है आपका ड्रायवर साहब,”… अनुज ने आगे झुककर गाड़ी चला रहे चालक से पूछा।

“साहब जी, मेरा नाम पारीक है,”…पारिक ने तेज आवाज में बोला। परीक की उम्र लगभग चालीस के आसपास होगी, देखने में सज्जन , बोली बहुत अलग के साथ हैदराबादी लहजा झलक रहा है।

“हां तो पारिक, हमें दार्शनिक स्थलों को देखने के लिए पहले कहा ले चलोगे”… अनुज ने पूछा।

“साहब जी, चारमीनार पहले देखते हैं, यह रास्ते में ही है, यह विशाल प्रवेशद्वार पुराने हैदराबाद शहर के बीचो-बीच स्थित है, और अब यह शहर का सबसे प्रचलित प्रतीक बन चुका है। इसका निर्माण सन 1591 में मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने शहर में प्लेग खत्म होने की खुशी में बनवाया था। इसकी चार खूबसूरत मीनार के कारण इसका नाम चारमीनार पड़ा, दूसरी मंजिल पर एक मस्जिद है साहब जी, जो शहर की सबसे पुरानी मस्जिद है।

“वाह पारिक, आपने तो बहुत कुछ बता दिया,”… अनुज उत्साहित होकर बोला।

“साहब जी मैं यही का रहने वाला हूँ, सरकार ने हैदराबाद के आसपास के इलाके को अच्छी तरह जानने के लिए हर रविवार सुबह आन्ध्र प्रदेश टूरिज्म द्वारा ‘गाइडिड हेरिटेज वॉक’ आयोजित करवाती है, यह उन सभी उम्र के लोगों व बच्चों को अपने शहर के बारे में जानकारी मिलने का बहुत ही बेहतरीन साधन हैं।”…पारीक ने महत्वपूर्ण जानकारी दी।

“पारीक, चारमीनार के पास भी कुछ देखने के स्थान है क्या,…”

“हां है साहब जी, मक्का मस्जिद है यह मज्जिद कुतुब शाही राजवंश की शैली की खूबसूरती का बयान करती है। चारमीनार के पास ही घूमने व खरिदारी के लिए लाड बाजार है। इस बाजार की रौनक बहुत ही मनमोहक है, यहां आपको फोटो लेते हुए लोगों को देख सकते हैं, इस बाजार की फोटो बेहद खूबसूरत और प्रसिद्धि प्राप्त है, फोटोग्राफर्स के लिए भी एक आदर्श जगह है,”…पारीक ने बहुत ही अच्छे से बताया।

“इसे देखने के लिए गाड़ी से उतरना होगा,”… अनुज ने पूछा।

“नहीं साहब जी, इसे देखने के लिए गाड़ी में ही से देखना होगा, यह भीड़ भरा इलाका है यहाँ गाडियाँ नहीं रोकी जा सकती, इसे गाड़ी में से ही देखिए, हम उसी के नीचे से गाड़ी निकालेगे साहब जी,”…पारीक ने बताया।

दोनों कार में से ही झुककर चारमीनार के एतिहासिक वैभव को देखते-देखते आगे निकल गये, जिया पतटकर पीछे के शिशे से कौतुहल से देखती रही, और अनुज, जिया के चेहरे पर अश्चर्य से मिश्रित अद्भूत आभा को देख रहा है।

जिया को जब पहली बार देखा था तभी से अपने अन्दर अनुज आकर्षण महसूस कर रहा है, वह समझ ही नहीं पा रहा कि यह है करता, जब कुछ समय पहले जिया एक दो दिन आफिस नहीं आ सकी थी तब आपने अन्दर अनुज ने अजीब सी बेचैनी महसूस की थी जब तक जिया से बात नहीं हुई,वह बेचैनी बनी रही थी, तभी से यह तो समझ ही आ गया था कि जिया का साथ अच्छा लगता है।

आज जिया के साथ अदभूत लग रहा है, हो भी क्यों न अदभूत के साथ अदभूत नजारों को देखने का आनंद ही कुछ ओर है। शहर जितना खूबसूरत है उतना ही उसके अंदर का अपना संसार खुश और संपन्न हो रहा है। अनुज, जिया के हर पल को अपने जेहन में कैद करना चाहता है, वह बहार के नज़ारे का लुफ्त उठाने से ज़्यादा अपने अन्यत्र मन में खूबसूरत पलों का संग्रहालय तैयार कर रहा है।

“कहा चले साहब जी,”… जब चारमीनार से बहुत दूर आ गये तो पारीक ने पूछा ।

“कहां ले चलोगे पारीक,”…अनुज ने भी अपने ख्यालों से बाहर आते हुए पूछा।

क्रमश:..

अगर तुम न होते

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