अपनी सोच को दो अंजाम

जब से माहिया इस घर में आई है तभी से उसने एक बात नोटिस की है, इस घर का बड़ा बेटा किसी न किसी बहाने उसे छूने की कोशिश कर रहा है, वह आशिर्वाद भी दे रहा हैं तो, हाथों का दबाव साधारण नहीं है, शुरू में माहिया को अपना कोरा वहम ही लगा, लेकिन धीरे-धीरे वह नजरों में उतारते लालसा के धागों को पहचानने लगी, वह इस घर में नई है, किसी से कहते भी डर लग रहा है कहीं उलटे उसी को ग़लत न समझ लिया जाये।

जेठानी के किसी भी काम को वह मना नहीं करती, लेकिन जेठ के कोई भी काम करने को मना कर देती, अक्सर बहाना बना देती। जेठानी को भी धीरे-धीरे माहिया की परेशानी समझ आने लगी, वह अपने पति को इतना तो जानती ही हैं कि मनचला है लेकिन घर में छोटे भाई की पत्नी पर… सोचकर ही उसे कोफ्त हो आती।

जब से उसके परिवार पर देवर की मौत का तांडव हुआ है, माहिया को सम्हालना भी मुश्किल हो गया है उसपर उसे सुरक्षित रखने का ख्याल रखना बेहद जरूरी काम हो गया।

बहुत दिनों से जेठानी सोच रही थी कि इसका क्या हल निकाले, माहिया को मायके भेज देना कोई हल नहीं है, वह कहीं भी जाएगी पुरुषों की मानसिकता वही रहेगी, वहाँ कोई न कोई दूसरा रिश्तेदार उसका फायदा उठाने की कोशिश करेगा, वह प्रयास में है कि तोड़ मिले ऐसा जिसकी कोई काट न हो और माहिया भी सुरक्षित इसी घर में रहे।

जेठानी ने अपने जितने भी परिचित थे सभी के यहाँ संदेश भेज दिया कि उसे अपनी देवरानी के लिए एक सुलझा हुआ और अच्छे व्यक्तित्व का लड़का मिले तो वह अपनी देवरानी की शादी करना चाहती है, उसमें कोई बंधन नहीं है अगर वह चाहे तो बरात ले आये, चाहे तो कोर्ट में मैरिज करें।

कुछ समय बाद समाज मैं )!)2लड़कियों की कमी ने जेठानी की समस्या हल करने में मदद मिली और बहुत सारे रिश्ते आने लगे, कुछ शादीशुदा भी थे जिनकी किसी न किसी वजह से पत्नी छोड़ कर चली गई या मृत्यु हो गई ।

उनमें से उसने एक को चुना और उस परिवार में दो तीन बार जाकर हो आई, तब तक उन्होंने घर में किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगने दी। सब तय होने पर माहिया के माता पिता को अपने पक्ष में करते हुए बता दिया।

शोभित का परिवार उसे पसंद आया, उसपर वह शादीशुदा नहीं है, इसलिए उससे थोड़ा डर भी था कि पता नहीं एक विधवा से शादी करेगा या नहीं ।

पढ़ा-लिखा सॉफ्टवेयर इंजीनियर शोभित बहुत ही सुलझे विचारों का व बहुत ही मिलनसार है।

“इस युग में आप इतना अपनी देवरानी के लिए कर रही है, जहाँ रिश्तों में मजबूती ही खत्म हो गई है,”… शोभित को जब सारी बातें बताई गई तो वह तो जेठानी की सोच पर ही नाज करने लगा।

अब जेठानी को माहिया को मनाने की बारी थी इसके लिए भी उसने शोभित से ही विचार विमर्श किया और यह निश्चित हुआ कि वह उसे किसी जगह मिला दें। बहुत सोच-विचार के बाद मंदिर में मिलना तय हुआ, यहाँ पर शिव मंदिर है जो काफी प्रसिद्ध है, उसपर भीड़भाड़ भी बहुत रहती है। यहाँ आसानी से दोनों कुछ समय बैठकर एक दूसरे से चर्चा कर सकते हैं और शोभित को यह जिम्मेदारी दी गई कि आगे की परिस्थितियाँ संभालने का और माहिया से संपर्क बनाने का सारा प्रयास उसे ही करना है।

सुलझे विचारों का शोभित, ने पहले से ही माहिया की तस्वीर देख रखी थी, एक जगह उसे आरती की थाली पकड़ा कर जेठानी कुछ लेने के बहाने वहाँ से निकल गई ।

शोभित ने माहिया को अकेले देखते ही उसके सामने जा खड़ा हुआ और बातों का सिलसिला चल निकला। काफी देर हो गई जेठानी वापस नहीं आई, माहिया भी जेठानी की इस आदत से वाकिफ हैं कि कोई पहचान का मिल जाये तो जेठानी जी को याद ही नहीं रहता कि वह कहाँ खड़ी है और किस के साथ आई है।

“वहाँ, उस पेड़ के नीचे बैठे, मैं भी जिनके साथ आया हूँ वह भी अभी तक नदारत है,”…एक तरफ इंगित करते हुए शोभित ने कहा।

माहिया भी खड़े-खड़े थकान महसूस कर रही है, उसे भी यह सुझाव अच्छा लगा और वह उस ओर चल दी। बहुत समय बाद घर से निकली माहिया भी इस बदलाव से अच्छा महसूस कर रही है। शोभित ने अपने बारे में बताते हुए उसके बारे में भी बहुत सारी जानकारी इकट्ठी कर ली। बहुत सारी जानकारी तो उसे वैसे भी पहले से ही पता थी।
जब जेठानी आई तब तक शोभित ने फोन नंबरों की अदला बदली हो चुकी थी।

अब दोनों की ही बातें होने लगी और शोभित ने माहिया को उस दुख से उबार लिया और वह एक सामान्य माहिया के रूप में सोचने समझने लगी, अपनी जिंदगी के बारे में वह बहुत कुछ समझ पाने की स्थिति में आ गई। अब माहिया अपने पैरों पर खड़ा होना चाह रही है जिसमें भी शोभित उसे सहयोग कर रहा है।

“मेरे साथ एक जगह चलना है आपको,”…एक दिन जेठानी ने जेठ को कहा।

“कहा जाना है, यह आफिस का समय है, शाम को चलना,”…जेठ ने टालते हुए कहां।

“इसी समय चलना होगा, काम जरूरी है, कोई बहाना नहीं, चलिए,”… जेठानी बोलती हुई सामने से हट गई।

जेठ भी जेठानी की इस आदत से वाकिफ हैं कि वह जो ठान लेगी करेगी ही, ज़्यादा बहस करने से बेहतर है आफिस में फोन कर दिया जाये।

कोट के बहार जैसे ही जेठानी ने गाड़ी रुकवाई, जेठ का माथा ठनक गया, वह बेचैन हो गया, जेठानी ने कुछ नहीं कहा और हाथ पकड़कर कोर्ट के अंदर ले गई, जहाँ पहले से ही शोभित और माहिया खड़े है शोभित के माता-पिता भी साथ खड़े हैं।

“यही आपके माता-पिता है जो गवाह बनेंगे,”… जज ने माहिया की ओर मुखातिब हो कर पूछा।

“हां जज साहब, हम भी माहिया की तरफ से हैं,”… जेठानी ने ज़बाब दिया।

“आप दोनों यहाँ दस्तख़त करे,”…जज ने रजिस्टर पर्सनल सेकेट्री की ओर किया।

“क्यों, साइन करना है,”… जेठ पसोपेश में हैं कि यह सब चल क्या रहा है।

“मैं, इन दोनों की शादी करा रही हूँ, इनके माता-पिता बनकर हमें हस्ताक्षर करना है,”… जेठानी ने दबी जबान से धमकाते हुए कहां।

जेठानी के स्वर में खौफनाक ठंडक थी कि जेठ की नजरें झुक गई, एक ही पल में वह आत्म ग्लानि से भर गया, उसकी नियत पर यह ऐसा करारा कोड़ा पड़ा कि वह उफ भी नहीं कर सका।

जेठानी के चेहरे पर सूर्य सी उष्मा दिव्यमान हो गई, जहाँ सकुन है, अपनी सोच को अंजाम देने की, समाधान कर रास्ता निकाल लेने की, भटके को राह दिखाने की भी।

अन्तरमन का कालश

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *