अब मिल भी जाओ इस पार

ढोल नगाड़े करते सोर
कच्चे पक्के चटके कचनार
रंग-बिरंगे सजे परिधान
बिखरे फागुन से रंग हजार
अब मिल भी जाओ इस पार।

लोहड़ी जब दहकी बहकी
ठुमके कई लगाती बहार
चुड़ी खनकी ताल पे ताल
लौट आई बसंत बहार
अब मिल भी जाओ इस पार।

आँगन घुमे, चुनरी बहके
मन के कोने हरसिंगार
पावन पुनीत सलीला बहती
झम झम बरसे खुशी अपार
अब मिल भी जाओ इस पार

त्यौहारों की झड़ी लगी
अंगड़ाई लेती सितकार
द्वेश भाव ने खोले किवाड़
ऊंड़ चले समंदर पार।
अब मिल भी जाओ इस पार

©A

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