अभिव्यक्ति का प्रतिबिंब “फ़रिश्ता”

                                                ∆  धनानंद पांडे 'मेघ'

दिन बुधवार 10 जून 2015 को चरवाडा स्टेशन, लखनऊ से काठगोदाम एक्सप्रेस पर सवार हुआ। जाना था दिनांक 12 13 एवं 14 जून 2015 को को कोसानी में आयोजित बाल पहरी की संगोष्ठी में।

गाड़ी अपने निर्धारित समय प्रातः पांच से करीब पांच मिनट विलंब से पटरी पर सरकने लगी, मेरे सम्मुख ही एक परिवार बैठा था। उस परिवार की ही तीन चार बेटियाँ बातचीत में सुविधा हेतु आमने सामने बैठना चाह रही थी। उनके सामने की सीटों पर दो संभ्रांत महिलाएं बैठी थी, उन से निवेदन कर उनकी सीट पर उस परिवार की सभी बेटियां बैठ गई तथा वह दोनों महिलाएं उनकी सीट पर आ गई।

रेल अपनी रफ्तार पकड़ने लगी किंतु वातानुकूलन की समस्या आ गई, जिससे बारी-बारी से सभी लोग शिकायती पत्र संबंधित रेलवे कर्मचारी को देने लगे। अन्य की तरह वह दोनों महिलाएं भी बाहर भीतर आती जाती रही।

रेल अपने निर्धारित समय पर से लगभग एक घंटा विलंब से हल्द्वानी पहुंची, में वही उतार कर किसी मित्र के घर चला गया। दूसरे दिन यानी 11 जून 2015 को प्रातः पांच बजे का कौसानी के लिए बस पर बैठ गया तथा लगभग तीन या चार बजे कौसानी पहुंच गया।

12 जून 2015 को कौसानी में करीब नौ बजे प्रातः से संगोष्ठी प्रारंभ हुई। मध्यान्ह में भोजन से पूर्व वही दो महिलाएं मुझे मिल गई। मैं बड़ी उत्सुकता से उनके पास गया। नमस्कार करते हुए मैंने कहा… “आप दोनों आप दोनों और मैं लखनऊ से एक ही ट्रेन में आए हैं मुझे क्या पता था आप को भी यही इसी कार्यक्रम में आना है।”

“अरे यह तो एक संयोग है”…उनमें से एक बोली। किंतु परिचय न हो पाने के कारण यह एक संयोग ही बना रहा।

दूसरे दिन एक ने मुझे अपनी पुस्तक भेंट की कहने लगी, “बड़े मन से यह पुस्तक में आपको देना चाहती हूँ।”

“धन्यवाद,”.. देकर पूरे पते के साथ मैने पुस्तक ले ली।

पुस्तक का शीर्षक है “फ़रिश्ता” कहानीकार सुश्री अंजना ‘सवि’ जी का जितना आकर्षक व्यक्तित्व लग रहा था उतना ही आकर्षक उनका नाम ‘अंजना सवि,’ नाम तथा उपनाम की चाहते हुए भी व्याख्या न करते हुए कहानियों के मर्म को आत्मसात करते हुए हर एक कहानी पर अपनी अभिव्यक्ति देने का मन कर रहा है।

16 जून को लखनऊ पहुंच कर मैंने इस पुस्तक का वाचन करना प्रारंभ किया । 16 जून से 6 जुलाई तक मैं इन्हीं कहानियों के संपर्क में रहा। इस पुस्तक में संग्रहित इस कहानी में नाना प्रकार की संभावनाओं से जोड़ते हुए, नाना प्रकार की प्रेरणाओं से साक्षात्कार कराया।

मेरा हमेशा से ही प्रयास रहा है, उस पर किसी भी साहित्यकार द्वारा मुझे कृति भेट की जाती है, उस पर अपनी अभिव्यक्ति अवश्य दूं, अभी जहां तक नोट कर पाया 37 पुस्तकों पर समीक्षा भूमिका या अभिव्यक्ति दे चुका हूँ । यहाँ एक संयोग यह भी रहा कि अंजना जी की 38 कहानियों पर अपनी अभिव्यक्ति 38वीं ही है।इन 38 कहानियों पर मैं कुछ न कुछ कह सकूं। इससे पूर्व मैं कहानियों के प्रारब्ध पर भी कुछ कहना चाह रहा हूं।

जैसा कि बताया जाता है इंसाअल्लाह खां द्वारा लिखित कहानी “रानी केतकी” सबसे पहली कहानी मानी गई है। पुरुष द्वारा लिखी गई यह कहानी महिला पर ही है। सबसे पहली महिला कहानी लिखिका भी एक बंग महिला है। मेरा मानना है कि इनसे भी पहले कोई और भी कहानीकार होगा और वह और कोई नहीं, कोई न कोई दादी अथवा मां रही होगी। अपने बच्चों को थपकी दे दे सुलाने, मनाने या कहूँ पुचकारने के लिए मनगढ़ंत या किसी राजा रानी की सच्ची कहानी उन्हें मां-दादी द्वारा ही सुनाई गई होगी, जो बाद में कहानी बनकर किसी कोरे कागज पर निखर कर आई होंगी।

वैसे भी सृजन कि जब कल्पना करें तो इसके मूल में नारी का अस्तित्व ही अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। मेरा मानना है कि धरती, धरती पर माटी, जल को संरक्षण देने वाली नदियाँ, वर्षा, हवा, धूप आदि सभी सृजन के कारक है, यही सभी नारी स्वरूपा है। जब-जब इनके विरुद्ध षड्यंत्र हुए हैं विनाशकारी लीला का प्रादुर्भाव हुआ है। वैदिक विकास के लिए पुस्तक, पुस्तकों के माध्यम से विद्या, कविता, कहानी मातृभूमि, मातृभाषा सभी मां स्वरूपा यानी स्त्री स्वरूपा है, यह सभी मानव जीवन के लिए महती भूमिका में है।

अंजना ‘सवि’ जी की 38 कहानियों का वाचन करने का सुअवसर मुझे मिला। प्रत्येक कहानी का वाचन मैंने उतनी तन्मयता से पढ़ा है आत्मसात किया है, जितनी तन्मयता, सरलता से समाज में व्याप्त तमाम विडंबनाओं को उकेरा है अंजना जी ने बड़ी ही सहजता से कहानियों को किसी शब्दजाल की जटिलता में उलझाये बिना ही नारी की तमाम परिस्थितियों को, भावनाओं की नाव में सजाकर, बिठाकर लेखनी की पतवार के सहारे सागर के उस पार तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है।

कहानियों की सबसे बड़ी सफलता या कहूँ विशेषता यह है कि कहानियाँ लंबे चौड़े फलक पर न होकर संवेदना में ही अपना प्रभाव छोड़ने में सफल है। कहानियों को बोझिल होने से सर्वथा अलग रखा गया है। लेखने के लिए तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है, परंतु प्रत्येक कहानी पर कुछ न कुछ लिख लेने की चाहत को नहीं छोड़ पा रहा हूँ, किंतु कह सकता हूँ कि कहानियाँ चंद्रमा की चाँदनी सी शीतलता का आभास कराती हैं।

सारी कहानियों को पढ़कर कुछ राहत महसूस कर रहा हूँ। इस संग्रह की यह प्रथम कहानी है, जीवन सफलतापूर्वक चलाने के लिए आपसी संबंधों की प्रगाढ़ता आवश्यक है, इसके लिए आपसी विश्वास एवं अपने-अपने अहम को त्यागते हुए समझौता ही जीवन पथ को प्रशस्त करता है। सीधी सरल भाषा में लिखी गई कहानी बड़ों के साथ-साथ बच्चों एवं युवा पीढ़ी के लिए पढनीय है।

बचपन की अठखेलियों, कल्पनाओं एवं घटित घटनाओं से दूर कहीं हर किसी को वास्तविकताओं से रूबरू होकर जीवन की डोर को बड़ी ही मजबूती से पकड़कर चलना जो चाहे उसे तत्कालीन घरोंदों के जाल से निकलना ही पड़ता है, साथ ही मन को भी वर्तमान में रमाना होता है।

भूलवश राह पर आपदाओं को प्यार के वभीभूत अंगीकार कर लेने की भूल को भूल को निर्भयता के साथ मुकाबला करते हुए समस्या के समाधान के निर्णय लेने का नाम ही जीवन है। भूल सुधार करके ही मूल प्यार को जीवित रखा जा सकता है जीवन की धरोंदा ही है ।

कबूल शीर्षक कहानी के वचन से महसूस किया की कहानिकार ने काल्पनिक पात्रों के माध्यम से कहानी में अपनी ही उपस्थिति बनाए रखी। कहानी को लगता है स्वयं भी जिया है। आस-पास के परिवेश की घटनाओं के माध्यम से रचनाकार द्वारा भोगे हुये सच को अभिव्यक्त किये जाने की तस्वीर उजागर हुई। कहानी की विषय वस्तु स्वयम की ही कहानी पाठकों को लगे, यही रचनाकार की सबसे बड़ी सफलता है।

सेवा फल को पढ़कर लगा कहानी का अंत सुखांत। पाठकों को और आगे सोचने का कोई अवसर नहीं रखा। इस कहानी में प्रयुक्त शब्द विन्यास “संगमरमरी देह पर काली आँखें किसी कलाकार की सार्थक, सहज व जीवित कृति लगती है,”..बड़ा अच्छा लगा।

अकेली नहीं मै, में भी आप ही नजर आती हैं। जितनी संक्षिप्त है उतनी ही सारगर्भित भी।

सबल, कहानी में सकारात्मक सोच के साथ पात्रों द्वारा सच्चाई का सामना करते हुए जो भी जीवन में पड़ा हो उसी को नीयति का निर्णय समझ संतोष एवं पुन: अग्निपथ पर बढ़ने का नाम ही जीवन है।

स्नेह बंधन, मात्र बच्चों के लिए न होकर सार्वजनिक जीवन में सभी के लिए प्रेरणादायक है। बच्चों के पाठ्यक्रम में होने योग्य कहानी है। बधाई।

ऐ सखी, एक अच्छे दोस्त की दोस्त के प्रति सार्थक संवेदना है।

मन का रिश्ता, एक सधी, साफ-सुथरी कहानी जो युवाओं के साथ -साथ, बड़े हो रहे बच्चों के लिए भी पढ़नीय है। अपने मित्र को बगैर काफी पिलाये ही जाने के बजाय, पीना दिखा दिया जाता तो कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरी भी चाय ठंडी ना होती। ‘सवि’ नाम को सार्थक किया है।

डायरी, एक पारिवारिक, सामाजिक, बड़ी मार्मिक कहानी है। मन द्रवीभूत करने वाली कहानी होने के साथ-साथ नारी उत्पीड़न को भलीभांति उकेरा गया है। किंतु हर पुरुष एक से न होकर रवि सा पुत्र भी होता है।
जगह-जीवन में कुछ ऐसे भी बड़ाव आते हैं जो कहानी का विषय बनकर डायरी में स्थान पा तो लेते हैं किंतु सार्थक कहानी नहीं बन पाते। लेकिन सवि जी ने इन्हें करीने से निभाया है।

इच्छापूर्ति, पुनः कहानीकार की संवेदनाओं को रेखांकित करती हुई यह कहानी बड़ी ही सहजता से सुखांत समाप्ति करती है। कहानी में कहीं न कहीं कहानीकार द्वारा भोगा सच अथवा संवेदनाओं की अभिव्यक्ति होती है । संवेदनायें जब वेदनाओं से परिपूरित होती है तो कोई न कोई कविता, कहानी स्वत: प्रकट हो जाती है। सोच गहरे तक पहुँचती है।

क्रूरता को विसरा कर सदा क्षमादान के भाव में ही जीवन आगे बढ़ाने का नाम ही मानवता है। अच्छी कहानी तो पारिवारिक, सामाजिक परिवेश में कटुता से शापित होने अथवा कर देने के बजाय समरसता एवं क्षमाशीलता ही सर्वश्रेष्ठ है, यह बात बड़ा है ही नहीं अपितु छोटा भी गुरु बनकर कह सकता है।

फ़रिश्ता, शब्द की उत्पत्ति कदाचित मानवों के लिए प्रयुक्त होने के लिए हुई है । यदि कोई किसी को धर्म संकट से उबारने को उद्धत हो स्वयं धर्म संकटों का वरण कर ले और सामना भी कर ले तो वही फ़रिश्ता बन जाया करता है।

सहमति, शीर्षक की कहानी बहुत अच्छी है। इसमें कविता की तरह ही मैं कहूँगा कि यति, गति, सुरताल, रस छंद, अलंकार सब कुछ है, अर्थात इसकी रोचकता है कि..पाठक का मन नदी में कल कल करते हुये जल की तरह बहता जाता है। अन्य कहानियों की तरह इस कहानी में अपने अपनी उपस्थिति बनाये रख कर होंगे हुते सच की पुनरावृत्ति की है। आपकी यही सफलता है।

हमराही, आज के युवाओं को भटकावे से बचाने में भी किसी युवा द्वारा हमराही बनकर साथ निभाने की कहानी है। साथ ही यह सचेत भी करती है कि भावावेश में आकर कोई निर्णय लेने मैं शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।

रूढ़िवादिता से ऊपर उठकर फिर से जीवन में बाहर लाने की तत्परता, विद्वता का परिचायक है “15 दिन में।”

परख, परिवार को पूजाघर बना देने वाली विचारधाराओं की परीकल्पना है।

संतुष्ट, कहानी में मुहावरे का प्रयोग बड़ी ही आसानी से विद्वतापूर्वक किया गया है ।… “हम सब बुक्का फाड़कर हंसते, जिसमें मेरी हंसी बुलंदी पर होती,”… कहानी में सुंदरता का पुट है। बचपन की सभी सुनहरी यादों को संजो ते हुये, उन्हें विस्तारित करने वाली कहानी है।

घटनाओं से सचेत कर देने वाली कहानी के रूप में है “बहम।”

मन का रिश्ता, शीर्षक कहानी में अपने उपनाम सवि का सार्थक प्रयोग करने के पश्चात, “जहा जो,”…कहानी में कहानीकार ने अपने उपनाम सवि नाम के अक्षत रोली से विभूषित किया है। यह सुनिश्चित करना कठिन हो गया है कि नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है अर्थात सवि स्वयं कहानी है अथवा सवि ने कहानी रची है, खैर सवि नाम की दूसरी कहानी भी रोचक पाठनीय एवं ग्रह्य है । यह सुनिश्चित करना फिर भी शेष रह जाता है कि सवि जी की वास्तविक कहानी कौन सी है।

निर्णय, ज्वलन्त समस्याओं को उजागर करती हुई सुखद अनुभूतियों वाली कहानी है। किसी यात्रा का शांत मन से मनन करने वाली पुस्तकें फ़रिश्ता।

गफलत में भी सवि जी ने पुनः मुहावरे का प्रयोग कर एक अलग रोचकता उत्पन्न की है… “मैंने निराशा को साकी वैशाखी देने की कोशिश की।” दूसरा दृष्टांत… “उसने धकेली हुई मुस्कान उछाली इतनी दमतोड़ और उदास मुस्कान किसे अच्छी लगती है।”

पंडित प्रताप नारायण मिश्र के वृद्ध गद्म पाठ में प्रयुक्त वृद्धों के लिए कहा गया है ….”जीभ नहीं मानती इसलिए आंय-बांय-सांय किया करते हैं।” इसी तरह आपकी कहानी भी एक अलग अस्तित्व छोड़ती है। कहानियाँ पाठक की बाँह पकड़े रहती हैं पूरी कहानी के वचन तक।

सविता, को पुनः रेखांकित करते हुये, “लड़की हुई तो क्या हुआ,”… बाली कहानी- महिलाओं को कमजोर समझने की भूल कबूल करने वाले पुरुषों की मानसिकता उजागर करती है, किंतु चाचा द्वारा भतीजी को थप्पड़ जड़ देना दो भाव व्यक्त करता है… पहला तो यह कि उसके नारी होते हुए इतना साहस करने की धृष्टता क्यों की इसका अफसोस। दूसरा…प्यार के कारण चाचा का मन उद्वेलित हुआ और कहीं चोट लग जाती तो क्या होता की चिंता के कारण हाथ उठा।

किंतु चाचा द्वारा उसकी सराहना भी की जानी चाहिए थी, ऐसी स्थिति में पुरुष द्वारा नारी शक्ति की सराहना कर मान्यता देने की भावना उजागर होती- क्योंकि हर पुरुष नारी को शक्तिहीन करने की भूल नहीं करता।

अगली कहानी सार्थकता की सार्थकता के विवेचन से पूर्व कहना चाहता हूं कि किसी महान कवि ने मां से प्रार्थना की है कि… हे मां मुझे किसी ऐसे व्यक्ति को कविता सुनाने का अवसर न आने पाए जो कविता को पसंद नहीं करता कहने का तात्पर्य यह है अपनी काव्य की प्रदर्शन सही समय पर सही स्थान पर ही करना चाहिए यही सही सार्थकता है एक महत्वपूर्ण बिंदु को उजागर करने का सार्थक प्रयास है।

भौर, दहेज लोभी समाज को आईना दिखाने वाली कहानी है यह आईना कोई युवा भी दिखा सकता है।

यात्रा, कहानी पूरी जीवन यात्रा का परिचय कराती है छोटी सी कहानी में कई संदेश जीते हैं परिवार नियोजन, शिक्षा, नारी की श्रेष्ठता, महानता और कर्मठता पुरुष से कहीं अधिक है, बच्चों के पढ़ाने योग्य युवाओं के समझने योग्य तथा बुजुर्गों द्वारा समझाने योग्य कहानी है।

कमला, कहानी प्रेरणा देती है की प्रेरणा जहां से भी जिस से भी मिले ग्रहण कर लेनी चाहिए, प्रेरणा पढ़ा लिखा ही नहीं अनपढ़ भी अपने अनुभव के आधार पर प्रेरणा दे सकता है जैसा कि एक अनपढ़ नारी पुरुष के अत्याचारों को सहते हुए भी मर्यादित रहते हुए अपने पुरुष के ऊपर आंच नहीं आने देती त्याग व बलिदान की यह प्रेरणा क्या ग्रह्य नहीं है।

पिछली सारी कहानियों से बिल्कुल हटकर एक अलग प्रयोग किया गया है “छुपी कोशिश,”.. में एक आम आदमी के पठन हेतु किया गया बेहतर प्रयास है यह कहानी।

मुँह दिखाई, में दिखाया गया है कि कंकड़ों की राह पर चल रही नारी की मन स्थिति एक संवेदनीय नारी ही समझ सकती है उत्सुकता बनाए हुए कहानी का अंत सुखांत है।

हर एक पुरुष के जीवन में ऐसी प्रेरणा देने वाली नारी आये ताकि पुरुष को भी ऐसी नारी का हाथ थामने की प्रेरणा मिले यह बात है “आत्मविश्वास,” में।

दिल की बात, में सामान सामाजिक सरोकारों का निर्वहन करते हुए आज के बच्चों में भी मानवीय संबंधों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है।

तृप्ति, एक सामान्य कहानी होते हुए भी इसका विषय बिल्कुल भिन्न होते हुए भी इसे विशेष बनाती हैं।

संतोषम परम सुखम की भावना से हर परिस्थिति में व्यवस्थित हो जाने को ही जीवन कहते हैं भिन्न विषय पर कहानी का सृजन किया जाना भी इसकी विशेषता है जन सामान्य की समस्याओं को उठाया गया है संग्रह में।

आधुनिक सामाजिक परिस्थितियों को अपने कहानी में संजोया या कहे उकेरा है किसी एक समाधान पर स्वयं न पहुँचकर आप मानो चाह रही हैं कि बच्चे स्वयं निर्णय लें, वैसे भी “सवालों के दंश” से कौन उबर पाया है।

ऐसा भी हुआ हो इन्हीं संभावनाओं को प्रमाणित करने संबंधी कहानी “सुहागिन विदाई” है किंतु व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु दूसरे के जीवन से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन दुर्घटनाओं का शिकार होने के बाद भी ही कुछ सबक भी मिलता है जो दृढ़ता की प्रेरणा देता है यही सब “सुहागिन विदाई” बता रही है।

नारी द्वारा बिगड़ैल पुरुष को सचेत करने वाली कहानी है “नजरिया”।

कुल मिलाकर अंजना सवि जी का कहानी संग्रह पढ़कर भावविभोर हुआ, इसी तरह आप समाज का प्रतिनिधित्व करती रहें, यह संग्रह कहानी की यात्रा में भी मील का पत्थर सिद्ध होगी, ऐसी आशा है उक्त सभी कहानियाँ, नारी को केंद्र पर रखकर रखी गई है मुझे अपेक्षा थी कि रचनाकार की दृष्टि भी विस्तृत होती है पुरुष को भी केंद्र पर रखते हुए भी कोई कहानी होती तो।

समीक्षक
श्री धनानंद पांडे ‘मेघ’
मित्र निवास पंतनगर
कॉलोनी खुर्रम नगर लखनऊ

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