आसमान बुनती औरतें
भाग 13
कुलवीर ने बातों-बातों में कई बार हर्षा को कहा है कि कोई पसन्द आ जाये तो बता देना। हर्षा जानती है, कोलकत्ता जैसे शहर में एक भी पुरूष शुद्ध मिलेगा ऐसा सोचना ही बेकार है। यहाँ के पार्क, ऐतिहासिक स्थलों पर रोज ही ऐसे दृश्य देखने को मिल जायेंगे, जहाँ खुला सब होता रहता है, हर्षा यह भी जानती है कि ये कालेज के पढ़ते छात्र छात्राएँ जीवन में कभी भी एक दूसरे से शादी नहीं करेगे। ऐसे में किसी से प्यार करना कहा की बुद्धिमानी है। सारा कुछ जीवन का सार तो इन गन्दी हरकतों से वह बहा चुके होते है फिर बचता है साधु बनने का ढोग, लड़की को जांचने परखने का सौदा और लड़की वाले ऐसे मामलों में लड़को को वही पुरानी लकीर पर ही आंकते है कि लड़के का चरित्र क्या देखना। हर्षा को ऐसे मामलों में कोफ्त होती है। माँ बाप जान बूझकर लड़के के चरित्र को अनदेखा करते है तो अब लड़की के माँ बाप भी लड़की को गऊ की श्रेणी में रखने से नहीं चुकते । रिश्ते की बुनियाद झूठ से शुरू होती है और जिन्दगी के थपेड़ों से बल खाती एक दिन टूट ही जाती है।
माँ बाप कब अपनी इज्जत को ताक पर रखकर बच्चों के भविष्य के बारे में सोचेगे, ऊपर से तुर्रा यह की हम जो कर रहे हैं तुम्हारे भले के लिए है। भला बताया तो जाये कि भला क्या कर रहे हैं, एक जुबान वाले इन्सान को जानवर समझकर किसी के खुटे पर बांध देना कहा की भलमानसता है। हर्षा अपने ही तर्क-कुतर्क में उलझी रहती है।
कुलवीर ने अगले माह से नौकरी छोड़ने का आवेदन दे दिया है। वह अब बीजी के साथ काम करेगी, हालाकि बीजी के साथ काम करना शारीरिक मेहनत ज्यादा है फिर भी उसे लगता है कि व्यवसाय अपना तो है किसी की नौकरी नहीं करना है, बीजी ने अपने जीने के रास्ते खुद चुने हो वह अपनी आँखों के सामने उन रास्तों को मिटाने का साहस नहीं कर पायेगी, शायद इस दुःख को बिजी बर्दाश्त नहीं कर सकेगी, जमा जमाया व्यवसाय है। कुलवीर ने हर्षा से भी सलाह ली और बीजी के साथ का करना उचित समझा।
कुलवीर के आवेदन पर उसके बाॅस ने वजह जाननी चाही, कुलवीर ने इतना ही कहा कि… “वह अपनी बीजी का व्यवसाय सम्हालना चाहती है।”.. कम्पनी के नियम के अनुसार वह एक माह पहले नौकरी छोड़ने का आवेदन दे रही है।
बीजी का व्यवसाय काफी बढ़ गया है, लोगों का आना और ठहरना बहुत होने लगा। इस चार मंजिला गोरखा पेलेश में राई आँगन बना है जो अन्दर ही है उसके चारों और कमरे बने हैं, कमरे हवालदार है, पर्याप्त रोशनी आती है, हर कमरे में दो दरवाजे है, एक दरवाजा बन्द रहता है। किराया भी सामान्य है और होटलों से इसका एरिया बड़ा व मुख्य हाल के दस कदम की दूरी होने की वजह से यहाँ अब काफी आवक जावक होने लगी है। उस पर हर ग्राहक बीजी की आवभगत से खुश होता है, दोबारा भी आने का आश्वासन दे जाता है।
कुलवीर सुबह से शाम तक रहती है रात दस बजे ड्राइंग हाल बन्द करके भाई सुखवीर जाता है। एक माह में ही कुलवीर की काया पतली होने लगी, काफी मेहनत हो जाती है। फिर भी कुलवीर को जैसा अनुभव जब वह बीजी के पास रहने आई थी तब होता था,…बोझ है, बेमतलब की जिन्दगी जैसे, जाने कैसे-कैसे विचारों ने उस समय उसे मथ दिया था, अब ऐसे विचार नहीं आते, बल्कि अब आत्मसम्मान के साथ अपनी काबलियत का प्रमाण देकर वह इस काम पर वापस आई है, तो सोच में फर्क पड़ गया है।
कभी-कभी कुलवीर सोचती कि रिश्तों को कितने कोणों से देखे वह, हर कोण से नया नजर आता है। जगह वही, वह वहीं, बीजी, वीरा, गुजारी सभी वैसा ही है फिर मन की उथलपुथल, परिस्थितियों का बदलना, टुटन के साथ जिन्दगी के टुकड़े बटोरती वह कितनी बिखरी हुई थी और आज, वह अपने वजूद का स्थाई स्तम्भ को मजबूती से थामें अपनी डगर पर चल रही है जहाँ न कोई डर, न भय है, है तो बस हौसला है।
क्रमश:..