आसमान बुनती औरतें

भाग 14

हर्षा दिन पर दिन अपने मैनेजर ओबेराय की ओर खीचती चली जा रही है, उसको झटका उस दिन लगा, जब पता चला की विनय ओबेराय को दूसरे ऑफिस का चार्ज सम्हालना है और वह अगले दो दिनों में चले भी जायेगे। हर्षा के लिए यह खबर कष्टप्रद थी, कितना दबा-दबा सा सही पर दिल में चिनगारी तो थी ही, लाख आय बाय करे वह, पर मन भटकता हुआ विनय के केबिन के आसपास रहता था, अब तो दूर से देखना भी दूभर हो जायेगा, सोचकर ही हर्षा के होठो पर सूखी धरती सी पपड़ियाँ उंग कर दरारे पड़ गई, गला सुस्ख हो गया और मन का क्रंदन कानों में नगाड़े बजाने लगा। घबराकर आँखों ने जल का स्त्रोत बहाया तो गालों से होते हुए आँसू सूखे होठों की पपड़ियों को फिगों गया, दर्द दृव्य होकर बहा तो मन का सर्वत्र बह निकलने को उद्यत हो उठा।

अपने टेवल पर सर रख हर्ष जाने कितना कुछ दिल से कहती सुनती रही, पता नहीं तुम मुझे पसंद करते भी हो या नहीं, तुम पराये पुरूष हो, पता नहीं मैं तुम्हारा प्यार हूँ भी या नहीं या तुम्हारे लिए अन्य ऑफिस कर्मचारी की तरह ही हूँ, तुम मुझे अपने काम की वजह से जानते हो या अच्छा काम कर लेती हूँ इसलिए, मुझसे मेरी तारिफ भी तो कर देते हो फिर तुम मेरे कौन से इस जन्म को जानते हो, जो पिछले जन्मों का मैं दम भरू, तुम मेरे ऐसे किसी परिचित को नहीं जानते जो मेरी इज्जत करते है, या मेरी उपस्थिति भी बर्दाश्त नहीं करते, तुम्हें क्या पता कि तुम मेरे साथ सुखी रहोंगे या मुझसे मिलकर और दुःखों को गले लगा लोगे, तुम मुझसे मिलकर पता नहीं सच्ची कसमें खाओगे या और लोगों कि तरह झूठी कसमें खाकर कुछ समय को मेरे साथ गुजारना चाहोगे, तुमने जो भी चाहत रखी है वह पता नहीं मुझमें पा भी पाओगे या नहीं, मैं तुम्हारी भाषा बोल, समझ भी पाऊँगी या नहीं, तुम्हारे तौर तरिके अपना भी पाऊँगी या नहीं, यह सब तुम्हें क्या पता है।

हां मुझे इतना पता है कि जो औरो से तुम्हें अलग करता है वह मैंने तुममें पाया है, तुमपर किस-किस का अधिकार है, क्यों है, कैसा है का फर्क मुझे पड़ेगा, यह सब न सोचते हुए कि तुम्हारी क्या इज्जत होगी या इस प्रसंग से तुम्हारी बेइज्जती होगी, मैं तुम्हारी बाहों में सुकून तलाश लूँगी, तुम्हारी सासों के साथ सुर से सुर मिला लूँगी, हर वह कदम उठा लूँगी, जो मुझे जचता है, बगैर यह समझे कि तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है। जाने कब तक इन विचारों मे उलझी रहती हर्षा कि राशि ने आवाज दी।

‘‘हर्षा क्या हुआ, लंच पर नहीं चलता,’’…राशि पूछ रही थी।

‘‘अहा’’ अचकचा गई हर्षा, लंच समय हो गया उसे पता ही नहीं चला, वह उठकर राशि के साथ हो ली। पूरे वक्त विनय ओबेराय की चर्चा होती रही, हर्षा मूक बनी सुनती रही। यही लोग विनय की कई बार उसकी कार्यशैली को लेकर टिप्पड़ी कर चुके हैं आज जब वह दूर जा रहा है तो उसकी क्षमताओं का बखान किया जा रहा है, व्यक्ति कितना खुदगर्ज है वह समझने लगी है।

विदाई पार्टी दी गई, हर्षा भी उपस्थित रही, सब कुछ सामान्य था शायद ऐसा लोगों को लग रहा हो क्योंकि हर्षा के अन्दर तो लगातार विछोह के विस्फोट हो रहे हैं पता नहीं विनय का भी यही हाल हो लेकिन ऐसा लग नहीं रहा, लोग क्या कोई मेरी सूरत से अनुमान लगा सकता है कि मेरे अन्दर क्या चल रहा है, मैं भी न बस उटपटांग ही सोचती हूँ, गर्दन झटकते हुए हर्षा ने यह विचार मन से निकाला।

कुछ देर बाद देखा, विनय सभी से मिल रहा है, हर्षा की भी बारी आई।

‘‘हां हर्षा अपना ख्याल रखना और अपने काम पर मन लगाना, आप हमें हमेशा याद रहेगे,”… विनय बोला।

‘‘जी सर, आप भी अपना ध्यान रखिए,’’… कहते-कहते हर्षा के शब्द भीगने लगे तो वह चुप हो गई।

‘‘हर्षा, जो किस्मत को मंजूर होता है वही होता है, अपने विश्वास को कायम रखना,’’…शब्दों में घुल आई आद्रता को भापकर विनय बोला।

‘‘जी सर, कहकर हर्षा ने नजरे झुका ली, विनय कुछ देर उसे देखता रहा फिर आगे बढ़ गया। हर्षा को हल्की सी अंधेरे में किरण नजर आई, लगा दर्द का समन्दर उधर भी हिलौरे ले रहा है लेकिन यह क्या उतने ही अपनत्व से वह दूसरे लोगों से भी बात कर रहा हैं, तो क्या उसके मन का भ्रम है, हर्षा को एक पल की मिली खुशी झट से उड़न छू हो गई, वह पुनः अपनी स्थिति में आ गई। चाहे जो हो वह दिल की बात दिल से ही रहने देगी, मुँह से कुछ नहीं बोलेगी।

क्रमश:..

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