आसमान बुनती औरतें

भाग (15)

रात घर पहूँची तो मम्मीजी जाग रही थी, नानी सो गई है।

‘‘पुत्तर थक गई है पानी गरम है जा नहा ले अच्छा लगेगा।”…थकी देखकर कुलवीर ने कहा।

‘‘सोना चाहती हूँ मम्मीजी,’’…

‘‘ठीक है पुत्तर जा आराम कर,’’…

‘‘पुत्तर क्या बात है आज तू उदास दिख रही है, मेरे पास आ,’’… हर्षा अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो कुलवीर पुनः बोली।

हर्षा मम्मीजी के नजदीक आकर बैठ गई, गोद में सर रखा और फूट पड़ी, पता नहीं क्या हुआ सारा जमा विस्फोट का मलवा बह निकला।

‘‘आज तो पार्टी थी तेरे बास की विदाई की, वहाँ कोई बात हुई क्या पुत्तर या तेरे बास ने तेरी फाइल में कुछ गलत लिख दिया, बता क्या हुआ है।’’… कुलवीर अपनी बेटी को यूं टूटा हुआ देखकर विचलित हो गई।

हर्षा क्या बताए मम्मीजी को, ऐसा कुछ नहीं हुआ, यह दिल निगोड़ा जाने कैसे-कैसे सपने बुनने लगा, वह बेवस उसकी कठपुतली बनी रही और दर्द से वास्ता उसका पड़ा। खूब रो कर निढ़ाल हो गई हर्षा। कुलवीर उसके सर पर हाथ फेरती रही, वह समझ तो रही है कि यह अंदरुनी घाव है बह जायेगा तभी कुछ बता सकेंगी, कुछ देर बाद हर्षा उठी और नहाने चली गई।

कुलवीर हर्षा के इस तरह रोने से समझने न समझने की स्थिति के बीच झुलती रही, कही यह, फिर सोचती इसके हाब भाव तो कभी नहीं दर्शाते कि यह किसी अलग डगर पर चल रही है, या आज किसी ने कोई छेड़छाड़ कर दी पर हर्षा इतनी मजबूत है कि वह छोटी मोटी घटना से घबरा नहीं सकती, फिर बात क्या हुई किही दिल के हाथों मजबूत तो नहीं हो गई। मेरी बच्ची कब तक अपनी जवान होती आरजूओं को दबाएगी, कभी न कभी तो उसे उनके सामने झुकना ही होगा। इस समय उससे बात करना ठीक नहीं, रोकर उसने अपना दिल हल्का कर लिया है कल बात करूंगी।

सुबह हर्षा तैयार होकर ऑफिस निकल गई, कुलवीर भी होटल चली गई। दोपहर में कुलवीर ने बीजी से बात की।

‘‘बीजी, हर्षा को अब शादी कर लेनी चाहिए,’’…

‘‘हां पुत्तर उसे कोई पसन्द हो तो बता देना हम शादी कर देगे, तुम उससे बात करों,’’…

‘‘बीजी, आप प्यार से पूछना उससे बात करे मुझसे शायद बोलने में झीझक रही हो।’’…

‘‘ठीक है पुत्तर मैं बात करूंगी तू चिन्ता न कर,”…

कुलवीर पूरे दिन सोच विचार में उलझी रही। उसकी नन्हीं बच्ची कब तक इस जिन्दगी के कठोर थप्पड़ों को सह सकेगी, युवा मन को भी तो किसी साथी की जरूरत होगी। लेकिन वह जानती है जिद्दी हर्षा अपनी इस मांग से जूझ रही होगी, पहले वह आश्वस्त नहीं होगी तब तक कुछ कहेगी भी नहीं, और जब पूर्ण विश्वास हो जायेगा तो खट से अपनी बात रख देगी, कैसे उसने मुझे अपने पिता के घर से निकाल लिया था तब तो वह छोटी थी, तो क्या अपने जीवन के मामले में वह कोई ऐसा वैसा कदम उठा लेगी। नहीं-नहीं मेरी हर्षा कही से कही तक कमजोर नहीं है वह तो एक मजबूत इरादों की लड़की है। कुलवीर को थोड़ा अच्छा लगा थोड़ी चिन्ता कम हुई, अपनी बेटी पर घमण्ड करने को मन कर आया। उसमें तो कोई खूबी नहीं थी वह तो धार में बहने वाला एक तिनका है जिसे बड़ी कुशलता से हर्षा ने मझधार से निकालकर किनारे ही लगया बल्कि कमजोर दिल को मजबूती की ऐसी पकड़ दी की, मैं जीवन की सही डगर पर निकल पड़ी।

वह अपने वजूद को सम्हाल पाने में दक्ष ही नहीं समक्ष भी हो गई। माँ को ऊँच नीच का पाठ पढ़ाती है हर्षा ने तो अपनी माँ को सम्हाला है मुझे अपनी हर्षा पर गर्व है। मैं बीजी की अच्छी बेटी साबित नहीं हुई लेकिन हर्षा की वजह से बीजी भी खुश रहती है। मेरी सारी काबलियत, अरमान वह हर्षा में देख लेती है। हम दोनों के अरमानों का प्रकाश पुंज कभी कमजोर नहीं हो सकता, कभी नही, कुलवीर ने सर झटका ओर इन विचारों को यही विराम देकर काम में लग गई, गरम-गरम फुल्के उतारकर ड्राइंग हाल में पहुँचाने लगी।

हर्षा का रोज का आफिस जाना लगातार चालू है। मन को समय की परत चढ़ने लगी है। पर कभी-कभी दिल बगावत कर देता है। कोलकत्ता शहर में कभी भी किसी भी बात को मुद्दा बनाकर बन्द का अभियान चलता रहता है कभी किसी हिस्से में कर्फ्यू तो कभी किसी हिस्सें में। वहां के रहवासी इन घटनाओं के आदि है लेकिन कोई दूसरे शहर का व्यक्ति अगर फंस जाये तो वह समझ ही नहीं पाता कि वह अपने काम व बन्द के बीच कैसे तालमैल बैठाएगा। इस बार गोरखा पेलेस का हिस्सा कर्फ्यू ग्रस्त हुआ तो हर्षा की वापसी मुश्किल हो गई, जगह-जगह चेक पोस्ट लगा दिये गये, सूनी गलियों में अकेले जाना वैसे भी खतरनाक लगता है हर्षा इन बातों की अब अभ्यस्त हो गई है वह ऐसे में जो भी साथ काम करने वाली सहेली करीब रहती है उसी के घर ठहरती है, ऐसा हर्षा के साथ भी हुआ है उसने भी कई बार अपने घर अपनी सहेलियों को रूकाया है।

क्रमश:…

आसमान बुनती औरतें

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