आसमान बुनती औरतें

भाग (15)

आज उसे सरला के घर रुकना है, दोनों घर पहुँच भी गई लेकिन सरला के घर अचानक मेहमान आ गये, अब समस्या यह की छोटे से घर में कैसे रहे, कलकत्ता के घर छोटे-छोटे होते है, यहाँ कि दुकानें, होटलें भी छोटी-छोटी होती है, सरला कुछ कह तो नहीं पा रही थी, लेकिन उसकी पेरशानी चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। हर्षा ने निर्णय लिया कि क्यों न वह अकेली घर चली जाये, पुलिस का पहरा तो रहता ही है फिर डर काहे का, एक बार कभी न कभी तो हिम्मत करनी ही होगी, सरला ने काफी मना किया लेकिन हर्षा नहीं मानी और आटो रिक्शा करके निकल पड़ी, जब तक समस्या का सामना नहीं करेंगे समस्या बड़ी ही नजर आती है।

आटो वाले ने भी कर्फ्यू के पहले उतार देने पर ही हामी भरी, निकल तो पड़ी हर्षा लेकिन दिल में डर की वजह से थोड़ी उत्तेजना, घबराहट दिल, दिमाग सभी हरकत में आ गयें, इन सब का मिश्रण जब एक साथ हो तो इन्सान शक्तिशाली बम बन जाता है किसी तरह की घटना या तिली दूर से भी दिखा दी जाये तो वह फटने-फटने को हो जाता है बिलकुल ऐसी हालत हर्षा की हो रही है, जैसे ही सूनसान गलियाँ गुजरने लगी उसे लगने लगा कि किसी अनजानी अन्धेरी खोह में वह धसती चली जा रही है जिसका कोई अन्त नहीं है, आज उसे अपना घर काफी दूर लग रहा है, रास्ते में जगह-जगह उसके आटो रिक्शा को रोककर पूछताछ होती रही, जहाँ थोड़ी बहुत हिम्मत जुटाती तो अगले किसी चौराहे पर फिर टूट जाती, पुलिस वाले भी तो कई बार मौके की नजाकत का फायदा उठाते ही है, कई बार अखबारों में पढ़ने को मिल ही जाता है, हर्षा के ऐसा सोचते ही हाथ पैर ठण्डे पड़ने लगते, जैसे तैसे साहस बटोरकर अपने में मजबूती की पकड़ लिए रहती, राम राम करके घर के नजदिकी चौराहे पर पहुँची तो वहाँ से आटो रिक्शा को आगे बढ़ने की मनाही थी।

अब हर्षा क्या करे, आटो रिक्शा वहीं छोड़कर वह आगे बढ़ी तो पीछे से पुलिस वाले ने सचेत किया….. ‘‘मेडम सम्हलकर जायें, कोई अप्रिय घटना न हो जायें,’’… उसका इतना कहते ही हर्षा के पैर थम गये, उसे पिछली बार की घटना याद आ गई, एक सूनसान रोड पर इसी तरह लड़की को अगुवा किया गया था, पुलिस के सामने, पुलिस कुछ नहीं कर सकी थी, एक बार तो गोली मार दी गई थी, सोचकर हर्षा में डर की तेज-तेज लहरें चलने लगी, अब लगा गलत कर गई, वह सरला के घर रह जाती तो ही ठीक था।

‘‘क्या आप मुझे अपने घर तक नहीं छोड सकते,’’…कुछ देर सोचने के बाद उसने पुलिस वाले से कहा….

‘‘मेडम मैं यहाँ डियूटी पर हूँ, कोइ घटना हो गई तो मेरी नौकरी चली जायेगी,’’…

‘‘आप जनता की ही हिफाजत कर रहे हैं, मुझे वहां तक छोड देगे तो किसी घटना की सम्भावना नहीं रहेगी, ओर आपकी डियूटी भी हो जायेगी,”…हर्षा ने अपने स्वर को कोमल बनाकर कहा।

कुछ देर सोचने के बाद वह सिपाही हर्षा के साथ हो लिया।

‘‘धन्यवाद …कहकर हर्षा ने जब घर में प्रवेश किया तो बीजी और कुलवीर की आँखे फटी रह गई,।

‘‘पुत्तर तूने ऐसा क्यों किया, क्यों चली आई तू,’’…कुलवीर बैचेनी में बोली।

‘‘तूने तो फोन किया था न कि सरला के घर रूकेंगी,’’…बीजी परेशान होकर बोली।

‘‘सरला के घर मेहमान आ गये इसलिए चली आई,’’…

‘‘फोन तो कर देती,’’…कुलवीर ने तीखे स्वर में कहा।

‘‘मैं आ गई, सब ठीक है,’’…

‘‘पुत्तर रब का शुक्र है कि तू सही सलामत है हम सोचते कि तू सरला के घर है,ओह.. अगर कुछ रब न करे हो जाता तो क्या होता, ऐसा नहीं करते पुत्तर, फोन किस लिए है, फोन करना चाहिए ना,’’…बीजी ने समझाने की गरज से कहा।

‘‘ठीक है नानी आगे से ध्यान रखूँगी,’’…कहकर हर्षा कमरे में चली गई, उसे तो आपने साहस पर गर्व हुआ कठीन डगर पार करना ही तो साहस है।

दूसरे क्या अगले पांच दिनों तक वह आफिस नहीं गई कर्फ्यू हटा तभी वह आफिस जा पाई। हर्षा आफिस पहुँची तो उसे पता चला कि नया बॅास आया है और वह भी वही जो पहले यहा थे एक बार हर्षा को लगा उसके कान बज रहे है, लेकिन जब उसने विनय ओबेराय का नाम सुना तो दिल बल्लियाँ उछलने लगा, कान से गर्म-गर्म हवा निकलने लगी, होठों पर पानी में उछाले कंकड़ की तरह मुस्कान उठकर किनारों को छूने लगी, आँखों में चाहत के आरजू थपेड़े से मारने लगे और सारा आफिस मादकता की पराकाष्ठा पार करने लगा।

आज हर्षा को लगा कि दिल से दिल की राह मजबूत होती है बिना कहे सुने दिल ने अपनी पसन्द, अपना प्यार अपने करीब ले आया है। अपनी सीट पर बैठकर हर्षा जाने कब तक यूं ही विचारों के गगन में पंख फैलाये डोलती रही, आज वह नन्हीं बच्ची बनकर अपनी घेरदार फ्रॅाक को गोल-गोल घुमाकर ताली बजाते हुए महसूस कर रही है उसकी मन पसंद फ्रॅाक पाकर वह फ्रॉक के साथ जिस तरह नाचना चाहती है बस ऐसा ही मन आज नाच रहा है, यह खुशी, यह उत्साह यदि एक तरफा भी है तो उसकी है, चाहे जैसे इस खुशी का उत्साह मनाये।

क्रमश:..

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