आसमान बुनती औरतें
भाग (16)
हर्षा की जिन्दगी में उत्साह के मेले लगने लगे, अब उसे इस कम्पनी को छोड़ने का ख्याल नहीं आता। दिन हफ्तों महिनों और साल में गुजरने लगे। इन्टरनेशनल मार्केट में हर्षा की कम्पनी का मार्केट डाउन हुआ तो उसका प्रभाव आफिस स्टाप पर पड़ा, अब अति आवश्यक कर्मचारी रखने की खबर आ गई इसका मतलब कि कर्मचारियों की छटनी होगी, हर्षा का दिल एक बार कांप गया, क्या करे वह, उसने दूसरी जगह अप्लाई करना शुरू किया, एक आवेदन उसने अपनी पुरानी नौकरी में भी दे दिया, वहा अभी की उस होटल में उसकी साथी सहेलियां काम कर ही रही थी। उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा और उस होटल से काल लेटर आ गया, चूंकि जब हर्षा ने उस होटल से काम छोड़ा था तब भी उसे नहीं छोड़ने के लिए कहा गया था। उसके काम की वजह से ही उसे पुनः काल लेटर आ गया। अभी यहां से निकाले जाने का नोटिस नहीं मिला है फिर भी हर्षा ने सोचा क्यों न वह यह जवाब खुद दे, मन रूकावट पैदा कर रहा था फिर भी एक सख्त कदम तो उठाना ही है। जब वह विनय के पास त्यागपत्र लेकर गई तो उसने उसे कहा…. ‘‘इतनी जल्दी क्या है, थोड़ा इन्तजार करों कम्पनी के हालात ठीक हो सकते है।’’
‘‘सर मुझे पता है इसने बड़े स्तर पर नुकसान होता है तो भरपाई में समय लगता है, मैं ये नहीं कह रही कि यह कम्पनी उबर नहीं सकती लेकिन हालात सुधारने के लिए आवश्यक कदम तो कम्पनी को उठाने ही पड़ेगे।’’
‘‘वह सब तो ठीक है लेकिन अभी से…।’’
‘‘सर, समझदारी तो यही है की हम ही अपना रास्ता चुन ले ताकि दोनों जिल्लत से बच जाये।’’
विनय कुछ नहीं बोला लेकिन उसके चेहरे की उदासी हर्षा को अच्छी लगी।
‘‘कहा काम मिल गया है,’’…विनय ने जानना चाहा।
‘‘मैं पहले जिस पांच सितारा होटल में काम करती थी वही काम करूगी,’’…
‘‘क्या नाम है होटल का,’’…
‘‘ग्रीन पेलेस,’’…
‘‘कहा है,’’…
‘‘बेलूर भठ की तरफ है,’’…
‘‘मैं आऊॅंगा वहां,’’…
‘‘जी सर,’’…
‘‘शुभकामना,’’…
‘‘धन्यवाद सर,’’… कहकर हर्षा निकल आई, आज उसे अच्छा लगा, इतनी बातें कभी विनय करता ही नहीं, काम की चाहे जितनी बात करवा लो, काम छोड़ने का जो बोझ मन पर था अब हल्का लग रहा है।
ऑफिस में अपने काम छोड़ने को उसने किसी को नहीं बताया था जहॉं काम से निकाला जा रहा है वहां काहें की बिदाई और काहे का मिलन, सब एक दूसरे से नजरें चुराते है ऐसे में चुपचाप निकलना ही हर्षा को श्रेष्ठ लगा।
दूसरे दिन जब वह ग्रीन पेलेस पहुँची तो सुबह आठ बजे राखी से मुलाकात हो गई। हर्षा को देखकर उसकी खुशी का ठीकाना न रहा, काम पर लौट आई जानकर वह उससे लिपट गई।
“रानी और स्नेहा कहां है यही है या कही ओर चली गई।”…
“दोनों यही काम करती है, आती ही होगी,”… कहकर राखी हर्षा से पुनः लिपट गई। आज राखी बहुत खुश है।
रानी, स्नेहा आई और चारों ने मिलकर हर्षा की वापसी का जश्न मनाने का प्लान बनाया और रविवार का दिन घूमने का प्रोग्राम। राखी का समय हो गया, वह ट्ररिस्ट बस के साथ चली गई, स्नेहा अपने स्टोर रोम को चेक करने हर्षा और रानी काउन्टर पर अपना काम देखने लगी।
हर्षा शाम को घर पहुँची तो उसने मम्मीजी व नानी को अपनी नौकरी का किस्सा सुना दिया। दोनों ने हर्षा के खुश होने को तबज्जों दी।
‘‘अगर तुम्हें ठीक न लगे पुत्तर तो अपने यहां काम करना, यहां भी काम बहुत बढ़ गया है,’’…हरदीप बोली।
‘‘नानी, आप और मम्मी जब तक सम्हल लोगी मैं तब तक बाहर काम करती रहूँगी, जिस दिन लगेगा मेरी जरूरत है मैं आपके साथ काम करने लगूंगी।’’…
इस रविवार चारों सहेलियाँ काली बाड़ी गई, अम्बे के दर्शन के बाद वे लोग निको पार्क में बैठी वहां चली अपने अपने बारे में चर्चा।
क्रमश:..