आसमान बुनती औरतें
भाग (39)
स्नेहा बताती रहती है कि आज सामान्य बैठक हुई है, दोनों परिवारों में, जिसमें चावल और ट्रेफिल पत्तियों को भाई और भाभी के सर पर रख कर घर के सभी लोगों ने आशीर्वाद दिया, यह एक रस्म होती है जिससे यह माना जाता है कि अब शादी की शुरुआत हो चुकी है, घर पर परिवार के सदस्यों का आना शुरू हो गया है।
बहुत अच्छा लगता होगा न स्नेहा, खूब चहल-पहल होगी घर में,”…हर्षा ने पूछा।
हां, मजा तो खूब आ रहा है सुबह से शाम कैसे हो जाती है पता ही नहीं चलता,”…स्नेहा का स्वर उत्साह के साथ आश्चर्य से भरा से भरा है।
आज शादी का दिन है, सुबह दूल्हा दुल्हन को पवित्र गंगा का जल लेने भेजा जाता है उस दिन दही चावल और केले के साथ मिठाई दूल्हा दुल्हन को अपने-अपने घर में खिलाई जाती है,”…स्नेहा ने बताया।
सर नेहा, तुम भाभी के घर गई क्या,”…रानी ने पूछा।
“मैं तो नहीं गई रानी, बुआ आई है न वही बता रही थी, यहाँ भैया से भी करवाया जा रहा है,”…स्नेहा ने बताया।
रोज की जानकारी देते रहना रानी, सुनकर बहुत मज़ा आ रहा है,”…राखी बोली।
“आज नंदी मुख पूजा में परिवार के पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं स्नेहा के घर से भाभी के घर के लिए मिठाई कपड़े (तट्टवा) याने उपहार भेजा गया। इसके बाद होती है भाई हालुड़ी मतलब हल्दी समारोह, तुम सब रोज ही आ जाओ न, “…स्नेहा ने कहां।
रोज तीनों मिलकर स्नेहा को परेशान करती और पूछा करती की बताओ आज क्या हुआ। रोज-रोज नया सुनने का उत्साह बना रहता बड़ा अच्छा लगता, सुनकर ही आनंद आ जाता है।
“आज सांखा और पोला मां खरीद कर लाई है, यह दुल्हन को पहनाया जाएगा,”…स्नेहा ने बताया, वह सब तो बेसब्री से बारात जाने का इंतजार कर रही है।
आज सुबह से ही तीनों सहेलियाँ स्नेहा के घर पहुँच गई, दोपहर में
बारी आई बोर जात्री, मतलब बारात लगने की खूब धूम धड़ाका हुआ, बरात का नाम लेते ही एक दृश्य घूम जाता है नजरों में, मस्त होकर अलबेले ढोल की थाप पर नृत्य करते नजर आ जाते हैं, भरपूर आनन्द लिया।
दुल्हन की मां द्वार पर बोर बरान दाला करती है मतलब कि दुल्हे का तिलक, आरती, स्वागत, सभी बरातियों का भी पुष्प वर्षा से स्वागत किया गया।
देखने लायक दृश्य है, दुल्हन का साट पाक, आँखों को पान के पत्ते से ढकना और पाठ पर बैठाकर लाना, जब सब की मौजूदगी में पान का पत्ता दुल्हन हटाती है और दूल्हे से नजरें मिलाती हैं तो समझो सुभ्रो दृष्टि हो गई, बहुत ही अद्भुत क्षण होते हैं यह, पवित्र धागे से दूल्हे दुल्हन के हाथों को बांधकर संप्रदान की रस्म पूरी की गई, दूल्हा, दुल्हन के माथे पर वरमेलियन रखता है और एक नई साड़ी उसे उड़ाता है, इसका मतलब हुआ कि शादी संपन्न हो गई और अब घड़ी आई बसार घर की मतलब विदाई की। यह क्षण जरूर भावुक हो जाता है और परिवार के सभी सदस्यों के नेत्र छलछला आते हैं।
इतना कुछ नया वह पहली बार देखकर तीनों सखियाँ प्रफुल्लित हो रही है कितना अच्छा है यह शादी समारोह, उन्होंने तो वैसे भी अभी तक इतने नजदीकी किसी भी शादी में शामिल नहीं हुई है, बहुत आनंद बिखरा है चारों तरफ, एक ही राह पर चलती जिंदगी में स्नेहा के भाई की शादी ने प्रफुल्ल होने के सारे स्त्रोत खोल दिए, तीनों सखियों ने भी जी भर कर प्रसन्न होने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
क्रमश:..