आसमान बुनती औरतें

भाग (48)

“बहुत सही बात कह रही हो बहन जी, एक-एक घर ही तो सुधरता है तभी समाज बनता है आपके साथ, आपके पास रहकर मेरी सोच में बहुत अंतर आ गया है मैं अपना परिवार तो संभाल ही लूँगा और जितना मुझसे बनेगा मैं दूसरों को भी इस राह पर चलने की सलाह दूँगा, समाज में परिवर्तन ऐसे ही तो आता है,”…जसवीर उत्साहित हो बोला।

“सच जो हम कहते हैं वही हम सब करने लगे तो इंसानियत बची रहेंगी, अच्छा वीरा, बाद में बात करते हैं क्योंकि मेरे पैलेस जाने का समय हो रहा है, आज तुमसे बात करके अच्छा लगा कि तुम मैं बहुत कुछ परिवर्तन आ गया है और जब सोच में परिवर्तन आता है तो घर तो सवर ही जाता है,”… हरदीप खुश होती हुई बोली।

“ठीक है बहन जी, प्रणाम करता हूँ, अपना ध्यान रखना और इस रिश्ते की बात को मैं यहीं पर बन्द करता हूँ, हर्षा के लिए और भी रिश्तें आएंगे, उस पर बात करेंगे प्रणाम बहन जी,”…जसवीर बात समाप्त करते हुए बोला।

“सदा खुश रहो वीरा, जुग जुग जियो, रखती हूँ,”… कहती हुए हरदीप ने फोन काट दिया।

कुलवीर केतली में चाय बना कर रख गई है, बिजी जसवीर मामा से बात कर रही है वह समझ तो गई थी कि जसवीर मामा, हर्षा के ही बारे में बात कर रहे होंगे और बिजी कुछ कह नहीं पा रही होगी, उसे ही कुछ सोचना पड़ेगा वह जल्दी ही हर्षा से बात करेगी।

बिजी ने फोन रखा और चाय केतली से कप में लेकर धीरे-धीरे पीने लगी, आज बहुत अच्छा लग रहा है हरदीप को, उम्मीद नहीं थी कि उसकी बातों का असर जसवीर पर इतना पड़ेगा, यह बातें तो हमारे लिए सामान्य है लेकिन कोई उससे सीख ले ले तो सोने में सुहागा ही है, एक पुरुष की भी अगर सोच बदलती है तो समाज और परिवार के लिए सुखद ही है। चाय खत्म करते ही बिजी उठी और पेलेस जाने के लिए तैयार होने चली गई।

क्रमश:..

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