आसमान बुनती औरतें

भाग (47)

“घर परिवार, चाचा तरफ सब ठीक है,”… हरदीप ने पूछा।

“हां बहन जी, सब ठीक हैं बस जो बड़ी अपनी ताई जी है न उनकी तबीयत आजकल खराब चल रही है खटिया से ही लग गई है, आप बताओ जी कुलवीर ठीक है अब उसका मन लग पा रहा है खुश रहती है, बहन जी आपने बहुत बड़ा निर्णय लिया है मैं तो आप के निर्णय पर नतमस्तक हूँ बहुत बड़ा पैसे वाला हो या जमीन वाला आदमी भी अपनी बेटियों को नहीं रख पाता पर आपका बहुत बड़ा जिगर है जो आपने अपनी बेटी को उस दोजख से निकाल कर उसको खुली हवा दी है मैं तो यहाँ जब से आया हूँ तब से यह बात सबको बता रहा हूँ कि बहन जी का दिल देखो कितना बड़ा है अपनी बेटी के साथ खड़ी है,”…जसवीर ने हरदीप के निर्णय की सराहना करते हुए गर्व से बोला।

“ऐसा है वीरा, जब आपका बच्चे पर मुसीबत आती है, तो आप बड़े से बड़े निर्णय ले लेते हैं और फिर न उम्र देखते हैं न समय और न ही समाज, आपको उस समय अपना बच्चा सुरक्षित चाहिए तो बताओ ऐसे में अपने पास न बुलाती तो क्या करती, आज हर्षा और कुलवीर दोनों खुश हैं, मैं उन दोनों को खुश देखकर बहुत खुश होती हूँ, यही मेरा सुख है, कुलवीर मुझे मदद करती है मेरी देखभाल करती है मेरे लिए तो यह अच्छी बात हुई न और क्या चाहती हैं मां कि बच्चे हमेशा खुश रहे,”… हरदीप ने भी अपनी बात रखी

“आप सही कह रहे हो बहन जी, आपने अपने बलबूते पर कर दिखाया अब बेटियों को ससुराल जाकर एक सीमा तक ही सहन करने की इजाजत होनी चाहिए वरना उसके लिए मायके के दरवाजे हमेशा खोल के रखना चाहिए, इसमें लड़कियों के वापस आने में किसी भी परिवार के सदस्यों का विरोध नहीं होना चाहिए यह मानसिकता बनानी ही होगी अब क्योंकि बेटी भी हमारा ही बच्चा होती है,”… जसवीर ने कहा

“बहुत अच्छी सोच रखने लगे हो वीरा, अपने बच्चों पर भी अमल करना, समाज क्या है परिवार ही समाज तो है जो हमारा परिवार है जिसमें हम क्या निर्णय लेते हैं कैसा सोचते हैं हमारे बच्चों की क्या खुशी है वह मायने रखती हैं न कि समाज क्या कहेगा, लोग क्या कहेंगे हमारे जीवन पर हावी होना चाहिए,समाज हम से है हम समाज से नहीं, यह गांठ अपने जेहन में बांधनी ही होगी”…हरदीप ने समझाया।

“यह बात तो सच है बहन जी, मैं जब से आपके पास से आया हूँ आपके धैर्यशील विचारों पर ही सोचता रहता हूँ आप अकेले हो कर निर्णय ले पाए और हम मर्द होकर भी अपने बच्चों के लिए खासकर बेटियों के लिए निर्णय नहीं ले पाते कितने कमजोर है न हम बहन जी,”…जसवीर ने पुरुष होने पर भी अपने को धिक्कारा।

“तुम इतना सोचने लगे हो वीरा, मेरे लिए तो यह बहुत ही खुशी की बात है हर कोई ऐसा क्यों नहीं सोच पाता, क्यों हम पेपर में यह पढ़ते रहते हैं कि आज फिर एक बेटी जलाई गई या उसे मार डाला गया, जिस दिन इंसान, इंसान को इंसान समझने लगेगा उस दिन समाज में परिवर्तन आएगा, अरे वह बेटियाँ तो वही है जो मर्द को पैदा करती है उनको जलाने का हक, उन्हें परेशान करने का हक किसने दे दिया, यह क्यों नहीं सोच पाता है पुरुष किस समाज की दुहाई देता है यह समान बनाया किसने मुझे तो ऐसे समाज में न तो रहना है और न ऐसे समाज को महत्त्व देने को तैयार हूँ, जीवन में कभी भी कहीं भी हमारे बच्चों को कोई भी निर्णय लेना पड़े तो हम मां बाप होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि हम उनके साथ खड़े रहे,”.. हरदीप ने बहुत दिनों से भरा अवसाद निकाला।

क्रमश:..

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