आसमान बुनती औरतें

भाग (78)

दिन भर हर्षा का ध्यान इसी बात में लगा रहा किस तरह शाम को विनय से बात करें सोच-सोच के थक गई तो सोचना बंद कर दिया, जो होगा देखा जाएगा लेकिन निरर्णायक ही होगा यह बात वह समझ रही हैं।

आज ऑफिस में ज्यादा भीड़ भाड़ भी नहीं है और शाम तक कोई नई एंट्री भी नहीं आई, दूसरी सिर्फ की सहयोगी भी समय पर आ गई ने गई, ऑफिस से समय पर घर के लिए निकल गई, बहुत सारे विचार उमड़ घुमड़ रहे हैं उसके पास तो इतना समय भी नहीं है कि वह अपनी सखियों से अपने विषय में कुछ चर्चा कर ले अब यही कहना होगा कि सब कुछ अचानक हो गया राखी के चक्कर में किसी को कुछ कह भी नहीं पाई।

शाम को घर पहुँची तो मम्मी जी अभी पहुँची नहीं है नानी थोड़ा देर से ही आती है, कभी कभी तो दोनों ही साथ आ जाती है तीनों के पास घर की चाबियाँ है हर्षा ने घर का दरवाजा खोला, अक्सर होता यह है कि जब वह आती है मम्मी जी पहले ही घर पहुंच जाती है लेकिन आज तो मैं खुद जल्दी आ गई है।

“हां मम्मीजी, आप कब तक घर आ रहे हो।”… हर्षा ने फोन लगाकर पूछा।

“मुझे थोड़ा समय लगेगा हर्षा, पर आधे घंटे में पहुँच जाऊँगी, तू घर आ गई क्या ?”… कुलवीर को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि हर्षा इतनी जल्दी घर नहीं आती है।

“हां मम्मी जी मैं आ गई हूँ, एक बात और कहना चाह रही हूँ कि आज विनय सर आएंगे तो डिनर ज्यादा पैक करा कर ले आना।”…हर्षा ने सूचना दी।

“अच्छा, तुमने अच्छा हुआ बता दिया मैं तो सोच रही थी कि बिजी आएंगी तो वह खाना ले आयेगी मैं तो वैसे ही निकलने वाली थी।”… कुलवीर जानना चाह रही थी कि बिजी खाना ले आयेगी तो कोई देरी तो नहीं होगी।

“ठीक है न मम्मीजी, नानी भी तो आठ, साढ़े आठ बजे तक आ ही जायेगी, ठीक है आप आ जाओ।”…

“चल ठीक है आती हूँ बाजार से भी पूछ लेती आ जाऊंगी कुछ स्पेशल लाना हो तो बता दे।”…

“ऐसा कुछ विशेष नहीं लाना है आप तो आ जाओ।”… हर्षा को यह मालूम है कि मम्मी बिना कुछ लिए नहीं आयेगी।

क्रमश:..

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