एक थी राजस्थान की हाडी रानी Ek was the Hadi Rani of Rajasthan

मेवाड़ की हाड़ी रानी की सच्ची कहानी, जिन्होनें मातृभूमि के लिए और अपने राज्य की जीत के लिए इतना बड़ा त्याग किया है कि शायद ही किसी ने किया हो।

अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए रानी ने खुद की कुर्बानी देकर बलिदान की मिसाल पेश की और इतिहास के पन्नो पर ऐसा करने वाली पहली वीरांगना कहलाई ।

हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी। जिनकी शादी उदयपुर ( मेवाड़ ) के सलुंबर ठिकाने के सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत से हुई और फिर बाद में उन्हें हाड़ी रानी के नाम से जाना गया।

हाड़ी रानी के विवाह को महज एक हफ्ता ही बीता था, कि उनके पति को युद्ध में जाने का फरमान आ गया। फरमान में औरंगजेब की सेना को रोकने का आदेश था।

जिसके बाद सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत ने अपने सैनिकों को यूद्ध की तैयारी और कूच करने का आदेश दे दिया था। लेकिन सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत हाड़ी रानी से दूर नहीं जाना चाहता था।
यही वजह थी कि हाड़ी सरदार को उनका पत्नी प्रेम यूद्ध भूमि में जाने से मन ही मन रोक रहा था। यह संदेश सुनकर हाड़ी रानी को भी सदमा लगा लेकिन हिम्मती हाड़ी रानी ने अपने पति रतन सिंह को युद्ध पर जाने  के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने पति को राजा का फर्ज याद दिलाया कि एक राजपूत युद्धभूमि में अपना मोह त्यागकर उतरता है और जरूरत पड़ने पर सिर काटने से भी पीछे नहीं हटता।

दूसरी तरफ औरंगजेब की सेना आगे बढ़ रही थी। जिसके बाद अपना भारी मन लेकर हाड़ी रानी से विदा ले सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत युद्ध भूमि पहुँचे।

हाड़ी सरदार को अपनी रानी की चिंता मन ही मन खाय जा रही थी। सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत के मन में संदेह था कि अगर उन्हें युद्धभूमि में कुछ हो गया तो उनकी रानी का क्या होगा लेकिन एक राजपूतानी स्त्री होने के नाते हाड़ी रानी ने अपने पति सरदार चूड़ावत को बेफिक्र होकर युद्ध के लिए कूच करने को कहा और ये भी कहा कि वे उनके बारे में चिंता नहीं करें और राज्य की विजय की कामना करते हुए उन्हें  विदा किया।

सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत एक राजा होने के नाते अपने फर्ज को निभाने के लिए युद्धभूमि के लिए निकल तो पड़े लेकिन पत्नी प्रेम युद्ध से दूर ले जा रहा था। वह इस बात से व्याकुल था कि वे अपनी रानी को कोई सुख नहीं दे सके इसलिए कहीं उनकी रानी उन्हें भूला नहीं दे। कई तरह के डर से घीरा था राजा।

सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत ने रानी के पास संदेशवाहक से एक पत्र भेजा और इस पत्र में लिखा था कि ,”प्रिय, मुझे भूलना नहीं, मै युद्धभूमि से जरूर लौटकर आऊँगा। और इसके साथ ही इस पत्र में राजा ने अपनी पत्नी से उसकी अनमोल चीज मांगने का भी प्रस्ताव रखा और यह भी कहलवा भेजा कि वह उन्हें कोई ऐसी चीज भेंट दें जिसे देखकर सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत का मन हल्का हो जाए।”

हाड़ी रानी सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत का यह पत्र देखकर चिंता में पड़ गईं और यह सोचने लगी कि अगर उनके पति इस तरह पत्नी मोह से घिरे रहेंगे तो शत्रुओं से कैसे लड़ेगे।

इतिहास में वह अपने आप को एक कमजोर पत्नी नहीं कहलाना चाहती थी और न ही पति को युद्ध भूमि से मुँह मोड़ने वाला भगोड़ा देखना चाहती थी।

बहुत ही चिंतित थी। तभी उनके दिमाग में इस समस्या का एक हल सुझा, मातृभूमि के लिए हाड़ी रानी ने खुद की कुर्बानी देने का फैसला लिया।

एक सच्ची वीरांगना और राष्ट्र प्रेम की भावना के चलते हाड़ी रानी ने पति का मोह भंग करने के लिए और राज्य को जीत दिलाने के लिए अपनी अंतिम निशानी के रूप में सरदार के पास खुद का सिर काटकर संदेशवाहक से भेज दिया।

जब संदेशवाहक ने सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत के सामने हाड़ी रानी के अंतिम निशानी के रूप में रानी का कटा हुआ सिर पेश किया तब राजा अपनी फटी आँखों से अपनी पत्नी का सिर देखता रह गया और इस तरह राजा का मोह भंग हो गया था क्योंकि राजा की सबसे प्रिय चीज ही उनसे छीन ली गई थी।

फिर क्या था हाड़ा सरदार रावत रतन सिंह चूड़ावत विजय प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ शत्रुओं पर टूट पड़ा और औरंगजेब की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। लेकिन इस जीत का श्रेय शौर्य को नहीं बल्कि वीरागंना हाड़ी रानी के बलिदान को जाता है।

त्याग और बलिदान देकर अपनी सतीत्व की रक्षा करने वाली हड्डी रानी ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है और अपने साहस और पराक्रम को इतिहास के पन्नों में उकेर दिया है। हाडी रानी महानता की परिकाष्टा है।

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