Sawan Re सावन रे

छाई चारों ओर लाली
काजल डाल के
छुईमुई खड़ी
शाम निराली
पनघट पर गोरी
लिए पलकों पर लाज
धीमे-धीमे कह रही
नहीं आए साजन आज
कल-कल झरना बह रहा
बात प्रीत की कह रहा
लिए प्रकृति प्यार
दिल के द्वार
पगडंडी पर धूल अटी
आगमन की
सुगबुगाहट हुई
प्रफुल्ल हुई हो जैसे
नव जीवन की
ज्योत कोई
केसर सी सुरमई
सावन की यह
शाम ढली।

©A

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