ग़ज़ल
इन लबों पे हँसी चाहते हैं,
चैन की जिंदगी चाहते हैं ।
तिरगी में नहीं अब है जीना,
सुबह की रोशनी चाहते हैं ।
थक गए ख्वाहिशों के मुसाफिर,
अब सुकूँ दो घड़ी चाहते हैं।
मत करो बदजुबानी किसी से,
बात मिसरी घुली चाहते हैं।
खा चुके अब तो धोखे ही धोखे,
अब नहीं आशिकी चाहते हैं।
दर्द दिल में रहे बस जरा सा,
आँख में भी नमी चाहते हैं।
लोग कम ही मिले नगर में,
जो जहाँ में खुशी चाहते हैं।
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