ग़ज़ल
गीत उल्फ़त के वफ़ा के गुनगुनाए जाएंगे,
बंजरों में ताज सपनो के सजाए जाएंगे।
दे रहे विश्वास कहते हैं भरोसा अब करो,
वक्त आने पर वही चेहरा छुपाए जाएंगे।
रूठ जाए गर जहां तो रूठ जाने दीजिये
दोस्त गर छूटा तो ग़म कैसे उठाए जाएँगे।
कर गई छलनी अंधेरी रात को इक रोशनी,
भोर होते ही जले दीपक बुझाए जाएँगे।
रीत है कुदरत की यह तो मान लो मेरा कहा,
आंधियों में घर के तिनके भी उड़ाए जाएँगे।
दिल में उठता है बवंडर चल रही हैं आँधिया,
तेज़ आँधी में भी क्या शोले बुझाए जाएँगे।
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