ग़ज़ल

कौम को लड़वा रहे हैं,
चाहतें ठुकरा रहे हैं।

अब हया बाकी कहाँ है,
नाक ही कटवा रहे हैं

बेवफा दुनिया का आलम,
भय सभी अब खा रहे हैं ।

बेसबब कुछ लोग यां अब,
अब नफरत फैला रहे हैं।

किस तरह मिलता सुकूं वो,
साजिशें करवा रहे हैं

प्यार अब बाँटो कोई तो,
ईश भी घबरा रहे हैं।

©A

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