गीत

वह खेतों की मिट्टी सोंधी, हरियाली मनभावन,
देख-देख जिसको मस्ती में झूम उठे यह मन।
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…

अमराई में विकल गूँजती, कोयलिया मतवाली,
ची-ची चिड़ियाँ जहाँ, फुदकती फिरती डाली डाली,
मगन महकती बगिया का नंदनवन यहाँ कहाँ,
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ


मन को बहकाती वह खुशबू, वह अल्हड़-सा योवन,
बदमाती पागल करती-सी, वह पायल की छन-छन
मन डगमग कर देने वाली चितवन यहाँ कहाँ
यहाँ शहर की धुंध,-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…

सूरज की लाली में डूबी, वह गोधूलि-बेला,
पशुओं के कंठों में बजती, घंटी का खेला,
संध्या की धुँधली अलकों की उलझन यहाँ कहाँ
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…


रंग-बिरंगी बगिया में फूलों की मुस्कानें,
भँवरे गुंजन में सरगम के सातों सुर तानें,
तितली के पर का मनमोहक कम्पन यहाँ कहाँ,
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…


हवनकुंड की सुरभि खेलती मंदिर के द्वारे,
भक्ति-भाव से सम्पोषित उर-उर में उजियारे,
बिन पूजा ही बने पुजारी-से मन यहाँ कहाँ
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…


प्रेम और आपसी समझ से अभिसिंचित जीवन,
मिलजुल सुलझा लेते अपने मन की अनबन,
सच्चा शुद्ध गाँव वाला अपनापन यहाँ कहाँ
यहाँ शहर की धुंध-घुटन वह शीतलता यहाँ कहाँ…

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