जहाँ देवता रहा करते अमरकंटक

अमरकंटक स्कंद पुराण रेवाखंड के अनुसार अमरकंटक का अर्थ देवताओं का शरीर है यह समुद्र तल से 1070 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यहां नर्मदा का उद्गम स्थल है यह शहडोल जिले के पेंड्रा रेलवे स्टेशन से 44 किलोमीटर दूर अमरकंटक स्थित है।

महर्षि अगस्त ने यहां आर्य सभ्यता का प्रचार प्रसार किया अमरकंटक को ओंकार पीठ भी माना जाता है साल वृक्षों के घने वन से आच्छादित अमरकंटक,धार्मिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक,पुरातत्व एवं प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है । यहां विराट मंदिर के भग्नावशेष, शमी वृक्ष, अर्जुन के बाण से उत्पन्न बाणगंगा, सूर्यवंशी राजा राजवीर के अजमेर महल के पुरावशेष, प्रतिहार वंश महिपाल द्वारा 914 से 944 ईसवी के बीच नर्मदा तथा अमरकंटक के मेलों की विजय श्री आदि में इसकी प्राचीनता के प्रमाण मिलते हैं।

अमरकंटक विंध्य शिरोमणि है यह विंध्याचल का सर्वोच्च शिखर है इस का प्राचीन नाम मेकल है ।  इसी कारण नर्मदा को मेकलसुता भी कहा जाता है । जिस स्थान से भी नर्मदा निकली लाखों लोगों की प्यास बुझा दी, करोड़ों लोगों को जीवनदायिनी देवी की हर बूंद गुणकारी है।

मत्स्य पुराण अमरकंटक के बारे में कहा गया है कि  पवित्र पर्वत सिद्धू और गंधर्वों द्वारा सीमित है जहां भगवान शंकर देवी उमा के सहित सर्वदा निवास करते हैं । अमरकंटक का इतिहास छह सहस्त्र वर्ष पुराना है । जब सूर्यवंशी सम्राट मंधाता ने मंधाता नगरी बसाई थी, यहाँ के मंदिरों की स्थापत्य कला चेदि और विधर्व काल की है।

अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल है कहते हैं त्रिपुर नामक असुरों का वध और उसके नगरों का अंत करने के बाद भगवान शिव ने उसकी राख से इस नगरी को बसाया भगवान शिव की पुत्री नर्मदा के साथ यहां भगवान शिव का मंदिर है । श्रद्धालु इस मंदिर में आकर भगवान शिव और शक्ति स्वरूपा देवी नर्मदा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

अमरकंटक में दो महान गुरुओं का सम्वाद हुआ था।  सदगुरु कबीर साहब और महान संत गुरु नानक देव जी का मिलन और परिसंवाद आज से 500 वर्ष पूर्व यहीं पर हुआ था इसलिए वह आज भी उनके संगोष्ठी स्थल के नाम से परिचित हैं । यहां की प्रकृति ने इस वीतरागी अखंड फक्कड़ कबीर को ऐसा मान लिया था कि वह इसके लता अंगुलियों में कुछ समय के लिए आत्मलीन हो गए थे और ध्यान मग्न हो गए थे इसकी रमणीयता के आकर्षण से निकलने के लिए उस महान संत को कुछ समय लगा था । यही पर नानक देव जी से उनकी भेंट नए इतिहास को जन्म देती है। नानक देव जी का सद्गुरु साहब से गहन रूप से प्रभावित होना तथा आगे चलकर सद्गुरु साहब का अपने मत के प्रचार के लिए नानक देव जी को लेकर आश्वस्त होना आदि बातें इस स्थल को ऐतिहासिक संदर्भ देती है । साथ ही छत्तीसगढ़ी संस्कृति और व्यापक रूप से भारतीय संस्कृति को भी समृद्ध करती है । दोनों महान संत भारत की जनवादी संस्कृति और जनपदीय जीवन को एक नया उत्थान देते हैं । साथ ही उनको नवीन युगानुरूप नवीन अर्थ भी देते है,  तथा जनता में जागृति की एक नई लहर लाते हैं। दोनों भविष्यदृष्टा महात्मा जात पात भेदभाव,समानता, धार्मिक, असहिष्णुता, कट्टरता,पारस्परिक वैमनस्यता को मिटाकर एक वर्ग विहीन समानता मूलांक और समन्वयात्मक समाज की कल्पना करते हैं, योग जीवन की समस्याओं और उनके समाधान की परिचर्चा यहीं पर हुई थी ।

इस क्षेत्र में  देश के इस भाग में कबीर का यह पहला प्रवेश था । कबीर की चेतना और जीवंत प्रतिमूर्ति वह स्थल आज भी हर आगंतुक को इस महान ऐतिहासिक घटना को सुना रहा है । जगत जननी नर्मदा की पवित्र धारा उसे सजल बना रही है । ऐसी मान्यता है कि नर्मदा एक बालिका के रूप में सद्गुरु साहब से रहने के लिए थोड़ा सा स्थान मांगती है । कबीर साहब का उत्तर उनकी जन चेतना की सुंदर अभिव्यक्ति हैं।

“यह तो सभी भूमि गोपाल की है तू तो जगत की माता है ।”
कबीर और नानक के कार्य के महत्व को अधिक व्यापक दृष्टिकोण से देखा गया उन्होंने ऐसी विचारधारा को जन्म दिया जो आगे की कई सदियों तक काम करती रही।

भारत की प्रमुख साथ नदियों में से अनुपम नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली एक पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती है नर्मदा सर वस्त्रहीन जी बताई गई है तथा इसके उद्गम से लेकर संगम तक दस करोड तीर्थ है।

विक्रम संवत 1929 में होलकर राजघराने की महारानी अहिल्याबाई ने नर्मदा कुंड एवं विभिन्न मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया मां नर्मदा अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलकर छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश महाराष्ट्र गुजरात से होकर नर्मदा करीब 1310 किलोमीटर का प्रभाव बताएं कर भरूच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान है जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है पवित्र नदी नर्मदा के तट पर स्थित है जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है इसमें कपिलधारा ,शुक्ल तीर्थ, मांधाता,भेड़ाघाट, शूलपाणि ,भड़ौच उल्लेखनीय है।

नर्मदा उद्गम स्थल परिसर में कई मंदिर हैं यहां मां नर्मदा एवं शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर,  मां अन्नपूर्णा मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, श्री सूर्य नारायण मंदिर,  बालेश्वर महादेव मंदिर, मां दुर्गा मंदिर, शिव परिवार सिद्धेश्वर महादेव मंदिर,  श्री राधा कृष्ण मंदिर,  ग्यारह रुद्र मंदिर और भी अनेक छोटे – छोटे मंदिर है।
नर्मदा की महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में भी विष्णु के अवतार वेद व्यास जी ने स्कंद पुराण के रेवाखंड में किया है इस नदी का प्राकट्य ही विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस वध के प्राश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकंटक केमिकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया ,, वह रूपवती होने के कारण विष्णु अदि देवता ने इस कन्या का नाम करण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर काशी के पञ्चकोसी क्षेत्र में 10, 000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है।

माँ नर्मदा ने मांगा प्रलय में भी मेरा नाश ना हो,  मैं विश्व में एकमात्र पापनाशिनी प्रसिद्ध रहूँ। मेरा हर पाषाण शिवलिंग के रूप में बिना प्रण -प्रतिष्ठा से  पूजीत हो, विश्व में हर शिव मंदिर में इसी दिव्य नदी के  नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है।  कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वह दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं , ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किए जा सकते हैं परंतु उनकी प्राण प्रतिष्ठा अनिवार्य है जबकि श्री नर्वदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजित है । नर्मदा के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास कर करें। क्या वरदान नर्मदा जी को प्राप्त है।

सभी देवता ,ऋषि मुनि ,गणेश, कार्तिकेय, राम लक्ष्मण ,हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की।  दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर  तीर्थ स्थापित है । इस तीर्थ पर विष्णु द्वारा तपस्या की गई । उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई । तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे तट पर देवधारी सत गुरु से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।

अमरकंटक दर्शन नर्मदा का एक तीर्थ स्थान है जो हर मानव अपने इस जन्म में इस तीर्थ को करना चाहता है।

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