बेहतर समाधान

अकस्मात पति की मौत ने तिस्ता को हिला कर रख दिया, कहाँ तो वह जिंदगी में खुशियों के साथ बसर कर रही थी, और एक दिन अचानक दुर्घटना में संदीप का चला जाना, उसके वजूद को हिला कर चला गया, वह कुछ समझ पाती या समझने की कोशिश करती तब भी उसको कुछ समझ नहीं आता, किसकी नजर लग गई उसके हँसते खेलते परिवार को, संदीप क्यों कर छोड़ गया।

तिस्ता अपने दोनों बच्चों के साथ जिंदगी से सामंजस्य बैठाने का प्रयास किस तरह वह अकेली करें। संदीप से यह बात तो कभी हुई ही नहीं की बच्चों को अकेले सँभालना होगा, उसने तो कहाँ था की सात जन्मों तक वह साथ रहेगा फिर यह सब क्यों ? अपने आप को समझा पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है।

समय बहुत बड़े-बड़े घाव भर देता है और जिम्मेदारियों को सामने लाकर खड़ा कर देता है इंसान न चाहते हुए भी, उन जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ नहीं सकता, तिस्ता भी अपने बच्चों की परवरिश में जैसे तैसे लग ही गई। परिवार की उपेक्षा ने दिन में ही तारे दिखा दिये, कोई भी इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं है।

अपने आप को सँभालते हुए, बच्चों को संभालना आसान काम नहीं होता, पता नहीं कितनी ऐसी चीजें थी जो बच्चों की वह समझ ही नहीं पा रही है, क्योंकि वह अपने आपे में ही नहीं रहती है, उसे इतना विशाल जीवन बिना संदीप के गुजारने का सोचना भी पहाड़ सा लगता है।

क्यों… मेरे ही साथ क्यों हुआ ऐसा ? क्यों संदीप छोड़ गए ? मेरी ही झोली में इतने दर्द क्यों आये ? मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था ? जैसे अनगिनत सवालों से भरी रहती है उसकी शाम और रात तो आँसुओं में ही गुजरती।

एक वर्ष गुजरते-गुजरते तिस्ता कहीं न कहीं बच्चों को सँभालने में असफल सी रहने लगी, बेटा पढ़ाई से जी चुराने लगा और यदा-कदा बहाने बनाने लगा, बेटी अभी तीसरी क्लास में ही है लेकिन वह इतनी समझदार हो गई है की अपने काम स्वयं करने लेती है, पता नहीं कुदरत बेटियों को इतनी समझ क्यों नवाजता है की वह अपना बचपन ही भूल जाती है।

पांचवी क्लास का बेटा मनु इतना बड़ा भी नहीं हुआ की वह माँ को जवाब दे और बहन पर खींज निकाले, किंतु उसके अपने दर्द से वह खुद उबर नहीं पा रहा है। उस पर तिस्ता, उसके दर्द को समझ ही नहीं पा रही है, कैसे समझे वह भी, इतनी कम उम्र में मनु ने जो दुख देखा है उसकी पीड़ा तिस्ता कैसे समझ सकती है वह तो अपनी ही पीड़ा में घुली जा रही है।

समय बड़े से बड़े घाव भर देता है, और परेशानियाँ जिंदगी से जूझने का हौसला देने लगती है, जब सब तरफ से हार गई तिस्ता, तो उसने एक फैसला लिया और अपनी एक सहेली से इस विषय पर चर्चा की।
यह सहेली उसकी उम्र में बड़ी भी थी और जिंदगी का काफी अनुभव है, जब उसने बच्चों को न सँभाल पाने की बात अपनी उस सखी के सामने रखी तब उसने बहुत तरह से सवाल किए।

“तुम, क्या सोचती हो तुम्हारी इस समस्या का क्या हाल है ?” … सखी ने पूछा।

“मेरी, कुछ समझ में नहीं आ रहा है, इसीलिए मैं आपसे पूछना चाह रही हूँ।”…

“नहीं, ऐसा नहीं है, इसका जवाब तुम्हारे पास है, पर तुम अपने ही जबाव को सुनना नहीं चाहती।”….

“मैं, समझी नहीं, आप क्या कहना चाहती हो ?”…तिस्ता असमंजस में है।

“अच्छा, एक बात बताओ, क्या तुम बच्चों को कहीं छोड़ पाओगी? अपने से अलग तो तुम कर नहीं पाओगी, तुम चाहो की बच्चों को हॉस्टल में रखकर पढ़ा लो, अभी तुम्हारी स्थिति ऐसी नहीं है की उन्हें तुम हॉस्टल में रखकर पढ़ा सको, सब तरफ से तुम सोच चुकी हो, कौन रिश्तेदार तुम्हारा ऐसा है जो तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को पाल लेगा, ऐसे में क्या बेहतर होगा यह तुम मुझसे ही क्यों सुनना चाहती हो ? मैं यह चाहती हूँ इसका जवाब तुम दो।”…… बहुत ही शांति और धैर्य से सखी ने कहां।

तिस्ता सोच में पड़ गई, एकदम से कुछ नहीं सूझा उसे, वह कुछ-कुछ समझ भी रही है और कुछ-कुछ चाह कर भी न समझना चाह रही है ।

तिस्ता ने अपनी सखी की तरफ देखा नीचा सर किये वह मोबाइल में कुछ देख रही है वह समझ गई, शायद वह जो सोच रही है, वह तिस्ता ही बोले ।

“एक बेहतर जीवन साथी ही इस समस्या का समाधान होगा और उसमें शायद मुझे सामजस्य ज्यादा बैठाना पड़ेगा।”… तिस्ता ने सपाट लहजे में कह दिया।

“अब तुमने, समस्या की जड़ को पकड़ा है, मुझे लगता है की अब तुम स्वयं निर्णय लेकर अपने जीवन की डोर मैं किसी और की डोर बाँधने में सक्षम हो जाओ, जीवन कर्म युद्ध है, इसे बिना जूझें नहीं जीता जा क्या है।”…मुस्कुराते हुए सखी ने मोबाइल से नजरें हटाते हुए कहां।

“मैं सही सोच रही हूँ न सखी!”…. तिस्ता ने झिझकते हुए पूछा।

“हाँ तिस्ता, अपनी समस्या को, अपने को ही सुलझाना होता है, कोई भी आज तुम्हारी समस्या के साथ जुड़कर सामने आना नहीं चाहेगा, इसलिए बेहतर है की जो तुमने सोचा है उसकी तरफ अपने कदम बढ़ाओं और तुम सफल होंगी यह मुझे पता है।”… सखी ने तिस्ता के हाथों पर अपना हाथ रख दिया।

हाथों की गर्मी में आश्वासन है की अब उसे स्थाई समाधान खोजना ही होगा, तभी अपने जीवन की जिम्मेदारियों को निभा सकेगी, तुमने अगर चाह लिया है तो बच्चों के भविष्य को संवारने में एक बेहतरीन साथी अवश्य तलाश लोगी।

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *