झरना हो

चुभती हो जब
जमाने की नजर
चुपके से खुद में
सिमट जाना
जैसे कोई सपना हो।
तेरा मेरा
एकांत में अक्सर
लिपट जाना
आरजू का दीपक
जलता रहे
जैसे कोई पतंगा हो।
लो को साधकर
तेरा मीट जाना
प्यार के आलम में
मदहोश मुझ में
संवर जाना
जैसे कोई झरना हो।
दूर रहना जमाने में
अच्छा नहीं
सही यही है तेरा मुझ में
समा जाना
जैसे कोई तमन्ना हो।
हम एक ही हैं यही बात
तुम अच्छे से
मानना और
समझ जाना।
जैसे कोई अपना हो।

© A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *